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तुम्हारी तस्वीर
तुम्हारे भीगे बालो से
पानी की बूंदे फिसल के
तुम्हारे काँधे पर गिर रही थी...
उन बूँदो के साथ
जाने कितने लम्हे टूट कर बिखरे थे
मेरे ज़हन से....
यहीं तुम्हारे काँधे पर
जी चाहा हाथ बढ़ा कर
एक लम्हा बंद कर लूँ
अपनी हथेली मे....
तुम्हे छू के गुज़रे
उस लम्हे को छू लूँ
फिर से जी लूँ...
उस बूँद को तकिये मे
जज़्ब कर लूँ...
तुम्हारी खुश्बू से भीगा लूँ उस रात को
जो अक्सर बे-नींद बे-ख्वाब
मुझे सिरहाने सिसकती मिल जाती है....
पानी के नन्हे क़तरे तुम्हारी तस्वीर
से झाँकते तुम्हारे काँधे से
मुझे आज भी सैराब करते हैं...
हां तिश्नगि बढ़ा देते हैं....
पानी की बूंदे फिसल के
तुम्हारे काँधे पर गिर रही थी...
उन बूँदो के साथ
जाने कितने लम्हे टूट कर बिखरे थे
मेरे ज़हन से....
यहीं तुम्हारे काँधे पर
जी चाहा हाथ बढ़ा कर
एक लम्हा बंद कर लूँ
अपनी हथेली मे....
तुम्हे छू के गुज़रे
उस लम्हे को छू लूँ
फिर से जी लूँ...
उस बूँद को तकिये मे
जज़्ब कर लूँ...
तुम्हारी खुश्बू से भीगा लूँ उस रात को
जो अक्सर बे-नींद बे-ख्वाब
मुझे सिरहाने सिसकती मिल जाती है....
पानी के नन्हे क़तरे तुम्हारी तस्वीर
से झाँकते तुम्हारे काँधे से
मुझे आज भी सैराब करते हैं...
हां तिश्नगि बढ़ा देते हैं....
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तेरे तकल्लुफ़ से, हिचकने से यूँ लुत्फ़ अन्दोज़ होते हैं
जैसे मुहब्बत का पहला लम्स हो और दिल मचल मचल जाए..
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तेरी अगंड़ाईय़ों में पिरो दूँ नीन्दें अपनी
धड़कनें डुबो दूँ तेरे सांसों में
बेख़्वाब मेरी आँखें सो जानें दे
इन ज़ुल्फों से टपकती बरसातें में.....
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जो तड़प उठे दिल तेरा आवाम के दुख दॆद पर
मुझे लगता है तभी इनसान हो और तभी ज़िंदा हो तुम
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आ तुझे अपनी सांसों की खुशबू का पैरहन पहना दूँ
मेरी हर धड़कन तेरा आँचल बन छुपा लेगी खुद में तुझको....
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तुझे रूबरू देख कशमकश में हूँ जान मेरी
एहतराम में धड़कनें दिल की ठहर ना जाएं कहीं...
एहतराम में धड़कनें दिल की ठहर ना जाएं कहीं...
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खुश्बू से तुम्हारे शाने पर
अपनी याद लिख आई हूँ
अपनी याद लिख आई हूँ
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जो पा कर तुमको मुकम्मल हो
मुझको वह अधूरापन दे दो....
मुझको वह अधूरापन दे दो....
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लफ्ज़ खामोश रहे, जुस्तजू में आवाज़ की
रिस गईं खा़मोशियॉं होठों की दरारों से
तेरे बदन की ओट मिले तो मिले पनाह मुझको
कि घर नहीं बना करते दर और दीवारों से...
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बारहा चिलमन ने तेरे, मेरी आँखो को हया का पैरहन बख्शा है
आ कि आज तुझे बारिशों में पिरो कर अपना तसव्वुर पहना दूँ....
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रिस गईं खा़मोशियॉं होठों की दरारों से
तेरे बदन की ओट मिले तो मिले पनाह मुझको
कि घर नहीं बना करते दर और दीवारों से...
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बारहा चिलमन ने तेरे, मेरी आँखो को हया का पैरहन बख्शा है
आ कि आज तुझे बारिशों में पिरो कर अपना तसव्वुर पहना दूँ....
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अपनी निगाहों से खामोशी के दो घूँट पिला दे साक़ी
मेरी ज़बान पर तेरे लहजे की कड़वाहट अभी बाक़ी है....
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वो मुनतजि़र थी कि जवाब हमारा आए
उसकी ख़्वाइश और हम सरापा पयाम हो गए....
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