Tuesday, March 18, 2014



मुझे जुनून की हद के पार ले जाने को
तेरी मुहब्बत का आगाज़ ही काफ़ी है.
जो थपक दे मेरे रोते बिलखते  दर्द को
ऐसे सुकून को तेरा सीना गुदाज़ काफ़ी है
करने को मुझे हर पल खुद से गाफिल
तेरी सांसो का मद्धम साज़ काफ़ी है
जान! मेरा ज़ब्त-ओ-गुरूर आज़माने को
तेरा नींद में डूबा हुआ अंदाज़ काफ़ी है
कौन काफ़िर चाहता है एक उम्र का जीना
तेरे साथ का एक लम्हा उम्र दराज़ काफ़ी है
किसी और की आँखों में सुर्कुरू क्यों होना
वास्ते मेरे तेरी एक निगाह हमनवाज़ काफ़ी है







ज़िंदगी में लिपटी धूप ना दे
अपने बदन की परछाई दे दे
पहचान सके चेहरे पर चेहरा
आँखो को वो आशनाई दे दे
क्या होगी दुनिया की रौनक
दिल को थोड़ी रोश्नाई दे दे
करदे मेरी चाहत का फ़ैसला
फिर कशमकश से रिहाई दे दे
तेरे बाद कुछ और ना देखूं
आँखो को ऐसी बिनाई दे दे


जी ले उस रोशनी में जो हिजाब से छन के आती है

यह वो कशिश है जो हया पहन के आती है............. shaista

  कोई ख़ला जब माहौल में शोर के बीच बनी दरारों में बैठने लगती है , तो यूं लगता है, बेचैनी को शायद लम्हाती क़रार आने लगा है , शायद होंठ जब चुप...