Saturday, February 22, 2014

Muhabbat tumko thi jaana

Humko bhi to ulfat thi



Muhabbat tumko thi jaana

Humko bhi to ulfat thi

Is dil ki beqarari ko…

Qarar sirf tumse tha

Hamari be-etbaari ka…

Etbaar tumhi pe tha

Muhabbat k woh kamsin rang

Meri nau-umr zindagi me

Ibadat me kati raatein

katey din teri bandigi me

tab…

lafzo ka parwaaz thi

khamoshi bhi awaaz thi

meri palko ki jumbish ka

pardh lena tera hamdam

beawaaz siskiyon ko bhi

samajh lena tera sanam

piye they aansu bhi toone

siye they zakhm bhi toone

magar ab…

udhad gaey hai taakey ab saarey

lahu lahu hai khwab hamarey

kabhi jo jazb hotey they

mere dard pahlu me tere

miley hai dhool me who ab

zameen k seeney me saarey…



khamoshi gungunati thi tab

ab yeh bilkhti jaati hai

Muhabbat tumko thi jaana

Humko bhi to ulfat thi





what a bliss !

She escorts me 

to my bed
seduces to close my eyes,
eyes exhausted and stretched
Fidgets with my ear lobes,
smooths every crease 
Every fold on my forehead,
applying her embalming fingers
on my fatigue ridden face
like poultice, with swift pace
licking wrinkles
their remnant trace
my soul sinks
sinks deep...deeper
penetrating comfort to depths
mind unleashed of burden
flaps and flutters
it's constrained wings,
let loose to wonder...
my heart sings
She strokes each cell
evoking them vibrate
in cadence
with her throbbing heart
she coos .. rubs her cheeks
against mine, to
hear me softly moan,
there i fall
in her
surrendering to the cajoling welcome,
to the world of divine bliss
to the serenity she carries
oh yes She is "SLEEP"
now i am in deep sleep...





उसकी खामोशी और उसकी आवाज़

उसकी खामोशी
ना चेहरा है, ना बदन है
गूँजती है ज़हन मे
मेरे लब-ओ-दहन में
ना लहजा है, ना आवाज़ है
मेरी धड़कनो के तलातूं पर 
मचलता हुआ एक साज़ है
घुलती है जो पानियों मे
फूलों के छू जाने से
वो अक्स है 
खामोशी तेरी...
झिलमिल करती लहरों पर
किरणों की मिलने से उभरे
वो रक्स है 
खामोशी तेरी...

उसकी आवाज़
बारीशों में फिसलती बूँद की
मलमल सी सरगोशी है,
ख्वाबो में डूबती उतरती
जैसे होश मे एक मदहोशी है
हवा से सिहर्ती मासूम अंगड़ाई है
जैसे पहन घुंघरुओं को
घटा उमड़ आई है
गुनगुनी धूप में
डालियों का लचकना जैसे
आवाज़ तेरी...
सीप की आगोश मे 
मोतियों का थिरकना जैसे 
आवाज़ तेरी...

कशमकश में हूँ अब ऐ मेरे हमराज़
ज़्यादा ख्वाबनाक तेरी खामोशी है, या तेरी आवाज़...?
या तेरी आवाज़?




Friday, February 21, 2014



कहा मैने, थाम के दामन बारीशों का ...बड़ी बेक़ारारी है
पसंद तुम थी, मिली भी तुम ...............मगर दुश्वारी है
ये ख्वाइश थी, तू बरसे टूट कर ..........,घटाओं की सूरत
जल गई हैं आँखे मुसलसल की झड़ी से......अब यह लाचारी है




बना एक रिश्ता रूहानी सा..

तेरे गुदाज़ दहन से गुज़र कर
ख़याल तेरे होठों पर पिघल कर
जी उठते है जब अल्फ़ाज़ में
ढाल कर सुरों को साज़ में
तू झुक आ ढलती शाम तले
चाँद उतरे जैसे बाम में तले
क़रार मुझमे उतार दे
नई रूह से फिर संवार दे
उंगलियाँ लहरों से जब खेलें हैं
नदियों के भी किनारे बोले हैं
हया का घूँघट ओढ़ के तू
दिल को दिल से जोड़ के तू
बक्श दे लम्स नूरानी सा
बना एक रिश्ता रूहानी सा
बना एक रिश्ता रूहानी सा...

गुदाज़: भरे हुए
लम्स: छुअन
बाम: छत


Thursday, February 20, 2014

सच्चा एहसास

हो आँतों से लिपटी भूक
ऑर लबों से चिपकी प्यास
जन्नत लगे है छाँव भी
पानी की दो बूँद है ख़ास
तप्ता सूरज रोटी दिखे
बारिश बने आब-ए-हयात...
है जज़बो की शिद्दत बेमायने
जब खाली पड़े हो पयमाने,,,
जब जान सको अहमियत क़तरे की
जब ज़र्रे की क़ीमत पहचानो
फिर भी गर मुहब्बत आए रास
तब मानो यह सच्चा एहसास....



  कोई ख़ला जब माहौल में शोर के बीच बनी दरारों में बैठने लगती है , तो यूं लगता है, बेचैनी को शायद लम्हाती क़रार आने लगा है , शायद होंठ जब चुप...