हाँ यूँ ही तो नही माँ मैं बन पाई हूँ
वो जो मेरा दिल है, मेरी जान है
मेरी खुद से शनासाई है
मेरी खुशियों का ज़मान है
मेरी रगों को खींच कर
लहू जिगर का भींच कर
आया था वजूद में
सिमटा हुआ सुजूद में
नर्म गुनगुनी धूप सा
मखमली फुहार सा
बेमक़सद हयात में
मुहमांगा क़रार सा
रूई के नर्म फाहों सा
झिलमिल करती शुआओं सा
फूलों का गुलिस्तान है
जिसके हर फूल में एक जान है
उसकी नन्ही मासूम किल्कारियों ने
रोपी ज़िंदगी ममता की क्यारियों में
उसके रोने में जो सदा लिपटी है
उस आवाज़ पर मर कर भी माँ पलटी है
उसकी हर हर आह को
बोसे से चुना है मैने
नन्ही नाज़ुक पलकों पर
कई ख्वाब बुना है मैने
अपने सीने से लगा कर उसको
हर तक़लीफ़ चुरा लाई हूँ
अपने लाल की ज़िंदगी के हर मौसम में
कभी बादल, कभी साया, कभी परछाई हूँ
हाँ यूँ ही तो नही माँ मैं बन पाई हूँ
हाँ यूँ ही तो नही माँ मैं बन पाई हूँ...
#shaista: