Sunday, April 20, 2014





ना वो कशिश ..ना वो तड़प ...ना ही वो बेक़ारारी है
जागी सी तेरी बेरूख़ी, और सोई वो पहली सी खुमारी है 



गुज़रा है वक़्त वो भी तेरे हबीब थे हम
फ़ासले थे दरमियाँ फिर भी क़रीब थे हम



<बारिश का एहसास>

बादल चुग रहे थे
बारिश की बूँदो से
तिश्नगि ज़मीन की
भीगी हुई नमी से
ज़र्रे ज़र्रे का जिगर
चाक किया...
धुल कर वज़ू से
पाक़ किया...
खुश्बुओ को आसरा
देकर
खुली फ़ज़ा में
बसेरा देकर
ज़मीन की कोख
से आज़ाद किया
रूमानी शनसाई दी
हवा को हमनवाई दी...



एक उम्र तक प्यासा भटकता रहा हूँ मैं
एक ज़रा सी मुरव्वत भी तेरी आब-ए-हयात लगती है... 

तेरी जुदाई में भी सनम, वो लज़्ज़त है ..
की चाँद भी ज़ायकेदार मालूम होता है...


बारिश की मखमली फुहार सी
तेरी यादें बरस रही हैं...
हर बूँद में तेरा अक्स तलाशती 
मेरी आँखें तरस रही हैं...

सोंधी खुश्बू सी याद तेरी
पी रही हूँ बारिश से....


होंठो पे उभरे थे लफ्ज़ की चुन लिया तूने..
वास्ते तेरे धड़का था दिल की सुन लिया तूने
जिस्म मेरा है मगर हर एहसास तेरा है
पलके थी बोझल मेरी, ख्वाब बुन लिया तूने...

वो हाथ जिन्हे तूने कभी थामा ही नहीं
वो हाथ तेरे लम्स को तरसते ही रहे

हमने दिल की धड़कने उधेड़ डाली मगर...
इनमे जो तेरी याद रहा करती थी मिलती ही नही ...

दो किनारेl को मिलlने की आरज़ू में
दरिया सिमट गया अपना पानी पी गया...

तूने चूमा था जब अपनी उंगलियों से मेरी कलाई को
रोएँ रोएँ में दिल को धड़कते महसूस किया था मैने

तेरे काँपते क़दमो से उठती आहट को पढ़ रहा हूँ...
दिल मे सँवर्ती ओर उमड़ती चाहत को पढ़ रहा हूँ...
पढ़ रहा हूँ इस चेहरे की दिलकशी ऑर नकूश को...
तेरी नर्म उंगलियों मे उतरती घबराहट को पढ़ रहा हूँ...



तेरे चेहरे पर यह बला की कशिश मेरे इश्क़ के दम से है
ज़रा सोच चाँद भी कहीं चमकता है रोशनी से अपनी 

काँच पर फिसलती पानी की बूँदो सी हँसी तेरी
जी चाहता है आँखो से इन्हे पीता जाऊँ मैं....



  कोई ख़ला जब माहौल में शोर के बीच बनी दरारों में बैठने लगती है , तो यूं लगता है, बेचैनी को शायद लम्हाती क़रार आने लगा है , शायद होंठ जब चुप...