Wednesday, January 20, 2016



ख़्वाब ए ज़मीं से हामिला बर्फ की क़तार है
हर ज़र्रे में जमी हुई, सोई एक बहार है
सुर्खी, सब्ज़ा तार तार यह दरख़्त ओर दयार का
दरख़्त की वो डालियां, कलियाँ ज़ार ज़ार हैं
बर्ग ए गुल कुचल गए , बर्फ में निगल गए
खुश्बुएं यतीम हैं, बिखरने पे ना इख़्तियार है
सूरज के अबरुओं पे कमसिनी शुआओं की
शाम के घूँघट पे फिर, बुझता हुआ शरार हैं
फिर ज़मीन की तिश्नगी पी गई यह सर्दियाँ
सर्दियाँ के जिगर में, अब बर्फ तार तार है
Haamla: pregnant
Barg e gul: flowers petals
Surkh: red
Sabz: green
Dayaar: world
Sharar: chingaari
Abruoan: eyebrows
Tishnagi: pyaas
Zaar: extreme pain
Shuaein: sunrays
Dr Shaista

तेरी आँखों के गुलाबी डोरे
पिरो देते हैं मेरी हर करवट में
तेरी अँगड़ाई के मौसम
मेरे वजूद के गोशों में
तेरी सांसो की ख़ुशबू लिए
बहार उतरती है
वहीं काँधे से लिपट के सोए
तेरी ज़ुल्फ़ों के ख़्वाब
पसीने से उभर उठते हैं
पेशानी पर बिखरी
तेरी लौंग की खनकती
शरारत की रानांईयां है
मेरी उँगलियों में कसे हुए
वादे हैं तेरे साथ के
मेरे पाँव से उलझी परछाइयाँ
तेरे लौट आने की
कि देंख मैं तुझे बिन
तेरी ही तस्वीर हूँ


जब तेरे ख़ुद से बिछड़ने की ख़बर आती है
मुझमे हर सू, तू ही तू नज़र आती है

तेरे सहरा ए दिल में गुल खिलाना चाहता हूं
अपनी सासों पर तेरी सासें जिलाना चाहता हूं
तुझ पर क़ुर्बान दूँ, मैं वार दूँ ये ज़िन्दगी अपनी
तेरे लब को आब ए इश्क़ पिलाना चाहता हूं

With throbbing heart, heavy with unease
Forgetting myself, in a statue I freeze
Cursing and wailing for this incurable disease
I am about to end up my life O Jeez! when,
An envelope arrives unannounced from overseas.
Shaista
तेरी बाहों को तरसती हैं मेरे वजूद की तन्हाइयां
तू पास आ कि तुझको खुद में सुलाने वाला हूँ
Shaista

तेरी क़ुरबत से हैं हामिला मेरे तसव्वुर के लम्हात
इन लम्हात को मैं मर कर भी जिलाने वाला हूँ
Haamila: pregnant
तेरी क़ुरबत से हैं हामिला मेरे तसव्वुर के लम्हात
इन लम्हात को मैं मर कर भी जिलाने वाला हूँ
Haamila: pregnant
दर्द लिखा था
लफ़्ज़ पढ़ा उसने
आंसू रिस गए थे
पानी कहा उसने
ज़ख़्म लहू लहू थे
लाइलाज किया उसने
रूह पर जिस्म का पैवन्द लेके
मैं मुहब्बत खो के
ख़ुद मुहब्बत हो गई हूँ।

Hatching from my old skin
I am no one new
But this song rejuvenates me
Happy birthday to you....
Shaista

ख्वाबों से हामिला एक झील में
सुर्ख़ फूलों से लदी एक नाव की
आग़ोश होना चाहती हूँ
मैं ख़ुशबू होना चाहती हूं
तुझमें खोना चाहती हूँ।

मैं झुर्रियों में उगा हुआ एक बचपन हूँ
मेरी निसबतें, मेरी हसरतें शबाब पर हैं।

The gust of breeze reddens your cheeks
The drops preen your hair
The bridal veil of moonlit night
Cascades down like spear
The drizzle of spraying mist
Drapes the fringes of your skin
Your milky lush beauty
Tests my infatuation
I wait with silent passion



सुनो मुझमें शोर बहोत है
पर तुम ख़ामोशी पढ़ लेना
वह जो होठों तक आके
आखों में डूब जाती है
वह जो लफ्ज़ों की क़ैद में उभरने
को छटपटाती है
वह जैसी अंधेरी रात की बारिशों में
छज्जे से टपकती है
वह जैसे किसी अल्हड़ सी दुल्हन की
मेहँदी में महकती है
वह जैसे उँगलियों पर मिट गए
तितलियों के रंग जैसी है
वह लहरों से तराशे हुए
संग जैसी है
वही खामोशी जो हर पल
जीने की आस में
तेरी उल्फ़त की प्यास में
मरती जाती है
सुनो।
तुम वह ख़ामोशी पढ़ लेना
कि मैं तुमसे कह नहीं सकती
मुझे कितनी मुहब्बत है
मुझे तुमसे मुहब्बत है

Sang: stone

अधजली शाम
कोहरे में जलती रात
चाँदनी का चखा हुआ
आधा अधूरा चाँद
ये सब गवाह हैं
कि बिन तेरे
मुझमें मुकम्मल कुछ नहीं.



~~~मेरे होने से ज़्यादा ~~~
सामने धुन्ध बिखरी पड़ी थी
क़दम क़दम पर क़दमों को चूम लेती
जैसे भीगे कोई होंठ ..
वो भीगापन सूखा जितना था
जैसे अपने लिए साँस भर ज़मीन चाहता हो
अपने होने की गवाही देने के ळिए..

..पाँव की उंगलियों के पोरों से
फ़ज़ा की खुन्की पीते हुए
उस भीगेपन को तसलीम
कर
किसी के ना होने का एहसास को
ज़िंदा कर गई थी मैं
उस एहसास को
अपनी सांसो पर जिला कर
कुछ यूँ की साँस रोक के
चाँद साँसें उधर दे कर...
.
सुनो मेरे मरने जितना जी जाओ
मेरे होने की वजह कर दो
मेरे जीने का सामान कर दो..
देखो मैं
तुम्हारे क़दमो के निशान पर पाँव रख
तुम में तब्दील होना चाहती हूँ
तुम्हारे जिस्म से गुज़र कर
तुम्हारा लिबास होना चाहती हूँ
लिबास..हाँ लिबास ..एक मुद्दत गुज़र गई मगर
मेरे जिस्म ओ लिबास से तेरी खुश्बू नही गई
होंठ कुछ भी कहें
मैं ज़हन को अपने
तेरे नाम कe विर्द में मुबतिला देखा है
यह नाम तेरा लफ़ज़ो की ज़िंदान से निकल कर
मेरी सोचो के उफक़ के परे
हर नाम में शामिल है
ओर उससे परे मेरा लहज़ा भी तुमसा है..
तुमसे है...
तुम देख सकते तो देखते मुझे
मेरे होने से ज़्यादा मुझमे
तुम्हारा ना होना साँस लेता है...
vird: repeat
zindaan: prison
shaista
लरज़ते लब की तहरीरें कभी इनकार नहीं होतीं
झुलसते अब्र की बूँदें भी कभी अंगार नहीं होती
तेरी दीद से हैं हामिला मेरी आँखों के सभी मन्ज़र
तेरी उल्फ़त न होती तो जि़ंदगी दुश्वार नहीं होती

तेरे नक्श ए पा
मंजि़ल मेरी
ये उठते क़दम
धड़कन मेरी
तेरी करवटें
तेरी दिलकशी
तेरी नीम कश
आखों में यूँ
मौसिकियां
बारिश की हैं
घुल गई ख्वाबों में जो
वह सुर्खियाँ
आरिज की हैं
तेरी मुस्कुराहट
हासिल ए ज़ीस्त
तेरी ज़ीस्त से
जिंदगी मेरी...
Shaista

आसमां के दामन से चंद बादल फ़िसल गए
बादलों की रुसवाई पर हम गिर के संभल गए
संभलना भी क्या ख़ूब था गिरने की कगार पर
एक मुद्दत से सोए आँसू यकायक उबल गए

The edges of your body
Fumed of fragrant scars
Agonies drip
in my palms,
I applied myself
Iike poultice
Soaking injuries,
Anxiety n pain
Draping my skin
Licking all wounds
Pecking beads of sweat
Oozing in vain
Aroma of me
Cascades on your face
With each reverberating moment
Pulse slips and race
Your crevices assuaged
Mine burst open
Tears gush out
Gulping space
Your are in sound sleep
and me in pain deep....
Shaista

And the echoes of ego
Drenched with love
Whispered thy name,
Nibbling the paraphernalia
of mantilla
Licking nervousness
I blushed in anticipation
Of my first caress.


चरागों के होठों पर
जल गई
पिघल गई
रात तमाम...
मद्धम सी आँच में
सुलगती रही
लौ देती तेरी आँखें
तेरी बातें...
कुछ अंधेरे जमा हैं
तेरी आँखों के दरीचों से दूर
चरागों के तले..
उन अंधेरों काे जला रही हूँ
अपने अधूरे ख़्वाब सुलगा रही हूँ
की लौ देती रहें
तेरी आँखें
तेरी बातें....


है ख़बर तुझे, क्या आलम मेरी, तन्हाइयों का है
तेरे ही वजूद में सफ़र किया बारहा तलाशा किया तुझे
Baraha: aksar
तितलियों के शहर में
रंगीनियाँ बिखरी पड़ीं
हाथ ख़ाली,और दरमियाँ
अनगिनत सरहदें खड़ी
पैरहन से बदल गए
चेहरे शनासाई के यूँ
रौशनी है हर तरफ़
अंधेरे हैं बीनाई में क्यों
ग़ुज़र गया है कारवाँ
कोई नहीं है हमनवा
ग़र्द ओ ग़ुबार से अटे हुए
मेरी उँगलियों पर टिक गए
तितलियों के परों के रंग
टिक गए फिर मिट गए....



कसक तेरी सिसकियों की तड़पती हैं जिस्म ओ रूह में
तेरी सिसकियों के होठों पर, मेरे होठ गुदाज़ रहने दे



baat se le ke tere sath tak
tere sath se har ehsaas tak..
Qatra qatra pighal kar mere wajood me simat ti
woh muhabbat thi..woh muhabbat hai


वजूद मेरा शाम की रानांई का कि़स्सा नहीं
हो ख़्वाब जिससे मुकम्मल तेरा मेरी ज़ात वह हिस्सा नहीं

मेरी वजूद की सरहद पर
तेरी छुअन के पहरेदार लिए
गुज़रती हूँ
दरमियाँ उन बंदिशों के जो
मुझे "मैं" नही होने देते...
हद और सरहद में अपनी ही ख्वाइशों की
बँधी और बटी हुई सी मैं...
मैं खुद में अधूरी ,
मैं खुद से ही मुकम्मल
खुद से तुझ तक पहुँचने की
कितनी सरहदें पार करती हूँ
तेरी मुहब्बत की
तेरी ज़रूरत की....
तेरी ही हयात की महवर
मेरी ज़ात है....
mahvar: axis
shaista

शहर के कलेजे से
गांव की निस्बत
मैं नोच लाया हूँ
बूढ़े गांव
में
बूढ़ा बचपन
जवान हो चला है
सफ़ेद पगडंडियों पर
काले घाव
मैं खरोंच लाया हूँ
खपरैल से रिसती धूप
की छाँव में
कुम्हलाती झुर्रियों
में,
फ़टते पाँव में,
उबलती जिंदगी जीने की
सोच लाया हूँ
मैं गाँव लौट आया हूँ
मैं गाँव लौट आया हूँ।
Nisbat: rishta
Shaista

ख़्वाब में भी इन आँखों को बेतक़ल्लुफ़ी की इजाज़त नहीं
की हसीन ख्वाबों की ताबीर अक्सर ख़ौफ़ज़दा करती है....

दे पनाह इन बाज़ुओं में क्या करूगीं क़ायनात
तुझमें उतर के उभरने को एक ज़माना चाहिए...

तेरी सांसो के घुँघरू
बज उठते हैं
कानों में
मौसम के बरसने पर
ख्वाइश के तरसने पर
आह तेरे लरज़ने पर...
मैं आँखें मूँद लेता हूँ
कलियाँ गूँध देता हूँ
ज़ुल्फ़ों में तेरी जाना
मेरे सीने से जो लिपटी हैं
जैसे लौ से चिंगारी
जैसे बदली हो मतवारी
बरसती है जो सिर्फ मुझपे
वह आँखें हैं कजरारी
घूँट घूँट पीता हूँ
रिस्ते हर ज़ख़्म सीता हूँ
तेरी हँसी की मय से मैं
सारे अब्र पीता हूँ
यही वह वक्त होता है
जिनमें टूट के अकसर
मैं जीता था, मैं जीता हूँ
रिस्ते हर ज़ख़्म सीता हूँ।


**कि तेरे मेरे दरमियान **
कि तेरे मेरे दरमियान
ये जो पुकार का एक सिलसिला है
कि जब जब तेरी निगाह उठे
मेरे वजूद का गोशा गोशा
लफ़्ज़ बन के तड़प उठता है
तेरी ख़मोशी में आवाज़ बन के
जी उठने के लिये....
बेतरतीब होती दड़कनें
बज़िद हो रगों में टूटती हैं
तेरे सीने में सासं बन के
धड़कने के लिये...
कितने बोसे हैं दर्ज
तेरे नाज़ुक क़दमों की रहनुमाई को
तेरे हमराह
परछाईं बन के चलने के लिये....
Bosey: kiss
Rahnumai: guidance
Bazid: obstinate
Gosha: corner


Kabhi dekha hai toone roi aankh ka manzar
Ki bhiigapan sulagta hai, din ko raat karta hai

Teri muhabbat jo be-had thi
Teri zyaadtiyon se kitni had tooti...

Less afraid than you appear
Feign and shiver, the mask you wear
In shreds n pieces my trust you tear
I singe n wriggle, n you fear mere..
इससे पहले की बेवफ़ा हो जाएं
तेरे इश्क़ में क्या से क्या हो जाएं
आ जीलें एक दूसरे की उल्फ़त को
क्या पता ये दर्द कल दवा हो जाएं
.


छाँव में लपेट कर
शुआओं से वार किया
झुलसा दिया बेरुख़ी से
उसने फ़िर इक़रार किया
दहलीज़ पर अपने जिस्म की
रूह कशमकश में है
अना को अपनी मार कर
क्यों उसको ना दयार किया....?


barf
यह जो क़दमो में सफेद बर्फ़ है
आबरू-ए फ़ज़ा है
जाने कितने सब्ज़ लम्हो की क़ज़ा है
या धड़कती यादों की ख़्वाब गाह है
जिनमे कभी ज़िंदगी रवाँ दवाँ थी
आज चुप है
क़ुदरत के रगों में दौड़ते फिरते लम्हों की
रवानगी जम सी गई है
हयात ए रवानी थम सी गई है
ज़र्द होंठों के पपड़ियों पर
हुमकती हैं कहानियाँ
सिसकती हैं वीरानियां
रस्म-ए-पज़ीराई को...
वो कमसिनी, वो लड़कपन
झुक चला है बोझ तले
बोझ है दयार का
दरख़्त ओ दीवार का
मदह परस्ती से प्यार का
वो हरारतें वो शरारतें
पी गई वो सर्दियाँ
वह सर्द मेहरी इन्सान की
मुहब्बत की, अख़लाक़ की
दौर ए जदीद का बहरापन
खो गया है शोर में
हुस्न ओ हवस का वहशीपन
पसरा हुआ चितचोर में
फिर उफक़ के पार
नर्म फाहों सा आफ़ताब है
हर सवाल का जवाब है
हसरतों से हामिला
भेदता हर नका़ब है
चेहरे पर मल के चेहरा
रौशनी के जिस्म पर तीरगी का पहरा
वह पहरा तू उतार के
फ़ज़ा को फ़िर बहार दे
पपड़ी ज़दा होठों को नई एक पुकार दे
इनसानियत को प्यार कर
इनसानियत को प्यार दे...
Aabru e faza: honour of nature
Qaza: death
Teergi: darkness
Daur e jadeed: modern era
Sard Mehri: cold/ rude attitude
Haamila: pregnant
Madah parasti: materialism
Dayaar: world
Dr Shaista
मेरी धड़कनों की क़ुरबत में धड़कता क़ाफिला तेरी यादों का
मेरी तन्हाईयाँ भी तन्हां नहीं जो ये क़ाफिले हैं दरमियाँ 


मेरी धड़कनों की क़ुरबत में धड़कता क़ाफिला तेरी यादों का
मेरी तन्हाईयाँ भी तन्हां नहीं जो ये क़ाफिले हैं दरमियाँ


क़ुरबत ओ सोहबत ए यार ने पुकारा है यूँ मुझे
मैं अक्सर हम-क़लाम हुआ हूँ ख़ुद अपने आप से

जनाज़ा सुरख़रू करना है
उनके आसुओं की बिसात पर
अल्लाह सैलाब ना आ जाए
उनकी बीनाई की बरसात पर
बेहिस ओ बेहरकत ये तन मेरा
अजब इस कशमकश में है
कि कैसे थाम लूँ उनको
ये पहले इश्क़ की शुरुआत पर

मेरी उल्फ़त की राज़दार, बेनक़ाब हुई ख़ामोशी मेरी
तेरी निगाहें हम- क़लाम हुईं, जब होंठों के सकूत से


मेरी आह पे ढलके तेरी आँख से मोती जो
तेरी पोशीदा मुहब्बत के सब राज़ अयां हो गए


सिसकियों में होठों की जो एक राज़ दफ़न है
अनकही हसरतों के तन का यह कफ़न है 


तेरी उल्फ़तें अब मेरे दिल से रिहाई मांगे
अपनी क़ज़ा ख़ुद ही लिखने को स्याही मांगे
मैं चूर हुआ जाता हूँ तेरे क़दमों से लिपट के
और तू है की मेरी मुहब्बत की गवाही मागें 


ये सर्दी की शिद्दत और गुलाबियाँ तेरे गालों की
कमर के ख़म पे उभरती अठखेलियाँ तेरे बालों की
सर्द आहों के दरमियाँ सुलगते से एहसास मेरे
उन एहसासों पर थिरकतीं सरगोशियों मेरे ख़यालों की








बेशुमार तल्ख़ियां भरी हैं मुख़्तसर इस जि़न्दगी में
मुस्तकबिल ये सँवर जाएगा अपने लहजे की नर्मी दे दे 



थरथराई पलकों पर लचकते एक क़तरा आसूं को
क्या कहूँ तू ही बता, ख़ुशआमदीद या अलविदा.... 


 
ख़ुद में समा के सारी ख़ुदाई को औन्धें मुँह
कहकशाँ के रगं उछाल दूँ मैं वह दरिया हूँ


 
बरस बीते, लम्हे बीते , वक्त ग़ुज़रता गया
जि़न्दगी पहलू में थी और उम्र दग़ा दे गई

 

शब ए आख़िर रात शबाब को पहुँचे
शुआएं छिटकें तो माहताब को पहुँचे
कितना दिलकश है वस्ल दिन ओ रात का
जैसे शर्मा के दुल्हन हिजाब को पहुँचे

 

मन्ज़र ए अव्वल में देखी थी तेरी अँगड़ाई
फ़िर हर्फ़ ए आख़िर क्या कहा मुझे याद नहीं

 

तेरी क़ुरबतों की ख़ुशबू में, गेसुओं में तेरे
मैंने जी है उल्फ़त तेरी यूँ भी कभी कभी 








  कोई ख़ला जब माहौल में शोर के बीच बनी दरारों में बैठने लगती है , तो यूं लगता है, बेचैनी को शायद लम्हाती क़रार आने लगा है , शायद होंठ जब चुप...