Wednesday, January 20, 2016

मेरी धड़कनों की क़ुरबत में धड़कता क़ाफिला तेरी यादों का
मेरी तन्हाईयाँ भी तन्हां नहीं जो ये क़ाफिले हैं दरमियाँ 


मेरी धड़कनों की क़ुरबत में धड़कता क़ाफिला तेरी यादों का
मेरी तन्हाईयाँ भी तन्हां नहीं जो ये क़ाफिले हैं दरमियाँ


क़ुरबत ओ सोहबत ए यार ने पुकारा है यूँ मुझे
मैं अक्सर हम-क़लाम हुआ हूँ ख़ुद अपने आप से

जनाज़ा सुरख़रू करना है
उनके आसुओं की बिसात पर
अल्लाह सैलाब ना आ जाए
उनकी बीनाई की बरसात पर
बेहिस ओ बेहरकत ये तन मेरा
अजब इस कशमकश में है
कि कैसे थाम लूँ उनको
ये पहले इश्क़ की शुरुआत पर

मेरी उल्फ़त की राज़दार, बेनक़ाब हुई ख़ामोशी मेरी
तेरी निगाहें हम- क़लाम हुईं, जब होंठों के सकूत से


मेरी आह पे ढलके तेरी आँख से मोती जो
तेरी पोशीदा मुहब्बत के सब राज़ अयां हो गए


सिसकियों में होठों की जो एक राज़ दफ़न है
अनकही हसरतों के तन का यह कफ़न है 


तेरी उल्फ़तें अब मेरे दिल से रिहाई मांगे
अपनी क़ज़ा ख़ुद ही लिखने को स्याही मांगे
मैं चूर हुआ जाता हूँ तेरे क़दमों से लिपट के
और तू है की मेरी मुहब्बत की गवाही मागें 


ये सर्दी की शिद्दत और गुलाबियाँ तेरे गालों की
कमर के ख़म पे उभरती अठखेलियाँ तेरे बालों की
सर्द आहों के दरमियाँ सुलगते से एहसास मेरे
उन एहसासों पर थिरकतीं सरगोशियों मेरे ख़यालों की





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