~~अम्मा अब चल ना पाऊँगा ~~
यहाँ हद नही है रास्तों की,है बिना उफक़ के आसमान
बेहद है सब कुछ यहाँ , फिर भी क़फस मे सारा जहाँ
दहलीज़ है क़फस कहीं तो, कही क़फस है रास्ता
कोई रिहाई माँगे सफ़र से, कोई भूख से है माँगता
पहले पाँव, फिर थे छाले, फिर घुटनो की बारी आई
जब घुटने भी फूट गाए ,कोहनी ने तब पुकार लगाई
पी कर सारा लहू जिस्म का सड़क फिर भी ना सैराब हुई
रोटी की परछाई दिखाई और सहरा से सराब हुई
कहीं उखड़ गई साँस सीने मे, जब धड़कन से निकली जान
अम्मा अब ना चल पाऊँगा, कह का मासूम हुआ बेजान
गोदी मे ढुलकी गर्दन पे अम्मा चीख के रोती है
कही दूर एक नर्म बिस्तर पे मम्मा लोरी पिरोती है
कही सब्ज़ी लगे हाथ चाट्ती सड़क की भूक ना मिटती है
कही रोटी पकड़े हाथो की लकीर ट्रेन से कटती है
शहर की सरहद पे एक बेवा, और घर पे बेदम शौहर है
घर पे रोते चीखते बच्चे, और क़िस्मत मांगती जौहर है
बाप के कांधे पे देखो बेजान हो गया एक मासूम
बेबस क़दम, लाचार सफ़र मे, दम निकला जाने किस जून
पथराए हवासों को जब साथी मुसाफिर होश मे लाए
तड़प तड़प के बाप पुकारे, बच्चा कैसे होश मे आए
बेदम तो सारी क़ैयनत है, होश मे कौन सा राही है
पिघला सीसा रवाँ रगों मे, मुँह पे ग़ुरबत की स्याही है
ट्रक के शिकम मे ग़ुरबत थी बैठी, जैसे आँतो मे भूक हो चिपकी
एक कराहे दूजा रोए, रब जाने कब मौत हो किसकी
अधमरे जिस्म को मरा मान के गाड़ी से सड़क पर दिया उतार
ज़िंदा बच्चे, साथ चल पड़े हर जानिब थी मौत क़ी कगार
प्यासे होंठ, सूखा जिस्म, हड्डी चमड़े मे लिपटा इंसान
कहे है हमसे ज़मीर मे झाँको, क्या मर गया सब का ईमान!
Dr Shaista Irshad