Monday, June 16, 2014

तेरी मुहब्बत ने बनाया है गुल-बदन
आ मेरे बदन की खुश्बू बाँट ले...


वो एक ख्वाब हसरतों के यतीम-खाने में
गवाँ दिया उसे हमने ही आज़माने में
नदी कशमकश मे रही समंदर की हमनवाई को
आह समंदर सूख गया फ़ासले मिटाने में....

यूँ बर्ग-ए-गुल उभरे है तह में सांसो के मेरी..
तेरी सांसो ने मेरे गेसुओं मे जब क़याम किया...
जैसे फिसली हो पहलू से हज़ार कलियाँ हमदम... 
चूम कर निगाहों से तूने जब सलाम किया....

अपने उदास बाज़ू मेरी यादों से भरे रखना
रात की स्याही को सहर से परे रखना
पी लूँगा दर्द सारे तेरे फूल से गालो से
मुहब्बत मे मिले सारे यह ज़ख़्म हरे रखना

... छू लेने से उसके वल्लाह गुज़रेगी क़यामत क्या...
चंद धड़कने परेशान है हसरत-ए-विसाल की आगोश में



~दूधिया गजरे से बादल~~

सुरमई रात ने दूधिया गजरे से बादल
अपने गेसुओ में गूँथ रखा हैं
मोतिए, मोगरे, बेले सा इश्क़
खुश्बुओं में भीगा के चखा है
घुँगरू से छनक जाते हैं बादल
चाँद के एक शर्माने से
जैसे छलके फूल से शबनम
या चाँदनी, चाँद के पयमाने से
गद्ले से बादल, हो रात का आँचल
या गज़ाली आँखो का, हो फैला सा काजल

चाँद के सीने से लिपटी
हो बदन चुराती चाँदनी
कमर के खम पर हवाओं का
रुख़ बदलती चाँदनी
बलखाती, झिलमिलाती
थिरकति पिघलती चाँदनी

यहाँ वहाँ सितारे बिखरे
जैसे टूटे गजरे से फूल
होंठों से चुगते उन फूलों को
चाँद के बदन की, चाँदनी सी धूल
निगाहों से पी कर
सांसो मे सी कर
इस मंज़र का  हिस्सा हूँ
चाँद की दुनिया का
चाँदनी में सिमटा
जैसे मैं बादलों का क़िस्सा हूँ

#drshaista

  कोई ख़ला जब माहौल में शोर के बीच बनी दरारों में बैठने लगती है , तो यूं लगता है, बेचैनी को शायद लम्हाती क़रार आने लगा है , शायद होंठ जब चुप...