Monday, June 16, 2014

~दूधिया गजरे से बादल~~

सुरमई रात ने दूधिया गजरे से बादल
अपने गेसुओ में गूँथ रखा हैं
मोतिए, मोगरे, बेले सा इश्क़
खुश्बुओं में भीगा के चखा है
घुँगरू से छनक जाते हैं बादल
चाँद के एक शर्माने से
जैसे छलके फूल से शबनम
या चाँदनी, चाँद के पयमाने से
गद्ले से बादल, हो रात का आँचल
या गज़ाली आँखो का, हो फैला सा काजल

चाँद के सीने से लिपटी
हो बदन चुराती चाँदनी
कमर के खम पर हवाओं का
रुख़ बदलती चाँदनी
बलखाती, झिलमिलाती
थिरकति पिघलती चाँदनी

यहाँ वहाँ सितारे बिखरे
जैसे टूटे गजरे से फूल
होंठों से चुगते उन फूलों को
चाँद के बदन की, चाँदनी सी धूल
निगाहों से पी कर
सांसो मे सी कर
इस मंज़र का  हिस्सा हूँ
चाँद की दुनिया का
चाँदनी में सिमटा
जैसे मैं बादलों का क़िस्सा हूँ

#drshaista

5 comments:

  कोई ख़ला जब माहौल में शोर के बीच बनी दरारों में बैठने लगती है , तो यूं लगता है, बेचैनी को शायद लम्हाती क़रार आने लगा है , शायद होंठ जब चुप...