उफ़ तेरी मुहब्बत~
तेरी पलकों पेर होंठ रख कर
रिस जाऊं ख्वाबों में तेरे
पसीने की बूँद बूँद उभरू
जज़्ब हो जाऊं रुखसारों पे तेरे
धीमी सी उभरती आँच की तरह
बुझते चिराग की लौ की तरह
धीरे धीरे अँधेरो को पीती रही
तेरे तसवउर की रोशनी में जीती रही
तेरी मन्कूहा बनके
तेरे निकाह मे आके
तेरी आगोश के हिसार में
पल पल गुनगुना के
हयात को आब ए हयात समझा
तेरे दिन को दिन
रात को रात समझा
तेरे बदन के मख़मूर -ओ-मखमली एहसास से
रूह तर है तेरे होंठो पर उभरी प्यास से
जब तेरे गुदाज़ बाज़ुओं में
मुहब्बत के सैलाब होते हैं
मेरी सांसो से रिहा
हज़ारो गुलाब होते हैं ...
तेरी मुहब्बत की ज़्यादती से
जो आँसू टपके चश्म-ए-तर से
तेरे होंठो से चुन लेने पर
वो भी शराब होते हैं...
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