Saturday, May 24, 2014


तेरे दिल तक जाती जो एक रहगुज़र है..
इसके हर ख़म मे जाँ,मेरी रूह का घर है...
इन निगाहों के हिसार मे हैं मेरे अनगिनत तवाफ़
इसी बंदगी के जुनून में अब ज़िंदगी का बसर है...



हैरान हूँ तेरी ज़ुल्फ़ो को अपने सीने पर परेशन देखकर
की यह आगाज़-ए-तूफ़ान है या की अंजाम -ए-महशर है

बा-ज़ाहिर थम गई है यह बेमक़सद ज़िंदगी लेकिन...
सांसो के होंठो पर ज़िक्र तेरा क्यों नही मरता....

तेरे दिल तक जाती जो एक रहगुज़र है..
इसके हर ख़म मे जाँ,मेरी रूह का घर है...
इन निगाहों के हिसार मे हैं मेरे अनगिनत तवाफ़
इसी बंदगी के जुनून में अब ज़िंदगी का बसर है...


मेरे तसव्वुर के दोश पे तेरी यादो की अंगड़ाई का आलम नl पूछ...
हर ज़र्रे मे अर्श-ओ - ज़मीन के नज़र आता है के तुम हो....

औलाद क आँसू कलेजा चीर देते हैं....
इलाही मेरा खून बह जाए उसके एक आँसू पे...

अपने दर्द को मुहब्बत का पयाम देती हूँ
तेरी यादों को अनगिनत लम्हें गुमनाम देती हूँ
सजा लेती हूँ तन्हाई कसक देते इन लम्हों से
उल्फ़त के इस रिश्ते को नाम-"बेनाम"देती हूँ....

~~जो किया करते थे पैरवी सच की
वोही झूठे करार दिए जाते हैं
जो मना लेते हैं तुझे रोता देखकर
वोही रूठे करार दिए जाते हैं
जो घुल गए पानियों से हर महफ़िल में
वल्लाह वोही अनूठे करार दिए जाते हैं~~


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