बेशुमार तल्ख़ियां भरी हैं मुख़्तसर इस जि़न्दगी में
मुस्तकबिल ये सँवर जाएगा अपने लहजे की नर्मी दे दे
मुस्तकबिल ये सँवर जाएगा अपने लहजे की नर्मी दे दे
थरथराई पलकों पर लचकते एक क़तरा आसूं को
क्या कहूँ तू ही बता, ख़ुशआमदीद या अलविदा....
क्या कहूँ तू ही बता, ख़ुशआमदीद या अलविदा....
ख़ुद में समा के सारी ख़ुदाई को औन्धें मुँह
कहकशाँ के रगं उछाल दूँ मैं वह दरिया हूँ
कहकशाँ के रगं उछाल दूँ मैं वह दरिया हूँ
बरस बीते, लम्हे बीते , वक्त ग़ुज़रता गया
जि़न्दगी पहलू में थी और उम्र दग़ा दे गई
जि़न्दगी पहलू में थी और उम्र दग़ा दे गई
शब ए आख़िर रात शबाब को पहुँचे
शुआएं छिटकें तो माहताब को पहुँचे
कितना दिलकश है वस्ल दिन ओ रात का
जैसे शर्मा के दुल्हन हिजाब को पहुँचे
शुआएं छिटकें तो माहताब को पहुँचे
कितना दिलकश है वस्ल दिन ओ रात का
जैसे शर्मा के दुल्हन हिजाब को पहुँचे
मन्ज़र ए अव्वल में देखी थी तेरी अँगड़ाई
फ़िर हर्फ़ ए आख़िर क्या कहा मुझे याद नहीं
फ़िर हर्फ़ ए आख़िर क्या कहा मुझे याद नहीं
तेरी क़ुरबतों की ख़ुशबू में, गेसुओं में तेरे
मैंने जी है उल्फ़त तेरी यूँ भी कभी कभी
मैंने जी है उल्फ़त तेरी यूँ भी कभी कभी
No comments:
Post a Comment