~बाँट ले जो तिश्नगि तेरी, वो प्याले बहोत हैं
मुझे जाने तेरे नाम से ऐसे हवाले बहोत हैं
मैं हरदम गुम हूँ तेरी चाहत के छलावो में
इन छलावो से मेरी रूह पर छाले बहोत है...
रफ़्ता रफ़्ता खोखला कर देते है रिश्तो को
रिश्तों को घुन की तरह खाने वाले बहोत हैं
मैं फारमोश कर बैठी हूँ भूक प्यास भी अपनी
सुना है तेरे दस्तरख़्वान पर हमनीवाले बहोत हैं
नंगे पाँव दौड़ जाती हूँ अब भी तेरी आहट पर
गोया की दिल-ओ-जान पर डाले ताले बहोत हैं ~~
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