Thursday, February 27, 2014



कुछ पल क लिए तुझे, पास बिठाना चाहता हू...
आए बचपन तेरी गोद मे, लौट आना चाहता हू...
मिटा दे जो शिकन दिल की ,सिर्फ़ चाँद खिलोनो से
मासूमियत से भरा वोही साल पुराना चाहता हू...



मेरी आँखो मे तेरे ख्वाबों का लहकता मौसम
तेरे लहजे मे है शिकवों का दाहाकता मौसम
एक ठंडी आह सा नाज़ुक, दूजा आग सा खारा है
आ बाट लें हम दो दिलों का यह बहकता मौसम...



थम थम के बरस रही हैं आँखे यह चँद रोज़ से
लगा ले जो तू सीने से, सिलसिला यह ज़रोक़तार चले
साँसें भी तो मद्धम हैं नब्ज़ भी डूबती जाती है
तू रख दे हाथ दिल पर तो धड़कनों का कारोबार चले
कुछ होश भी कम है और हम लड़खड़ाते जाते हैं
अगर तू थम ले मुझको क़दम यह बेइख्त्यार चले



कहा मैने, थाम के दामन बारीशों का ...बड़ी बेक़ारारी है
पसंद तुम थी, मिली भी तुम ...............मगर दुश्वारी है
ये ख्वाइश थी, तू बरसे टूट कर ..........,घटाओं की सूरत
जल गई हैं आँखे मुसलसल की झड़ी से......अब यह लाचारी है




मे आज भी मौजूद हू उसी एक लम्हे मे ...
जिनमे तू ठहरा नही ऑर लम्हा वो गुज़रा नही...



तेरी यादें कमाई है मैने...
सुकून और नींद के क़तरे बेचकर...


तेरे सांसो की ना तपिश मिले तो...अधूरी ये मुलाक़ात लगे! 
गीली लगे ये धूप मुझे................ झुलस्ती सी बरसात लगे!!
ना महके मेरे बदन का गुलशन......फ़िरू मैं मुरझाई सी!
ना मिले तेरा नूरानी लम्स तो.........सुलगती हुई ये रात लगे !!



गूंगे लफ्ज़, गूंगी सोच...गूंगे हैं जज़्बात यहाँ
बंजर दिल में कुछ अधमरे से...पाए जाते ख्वाब यहाँ
गूँथ रही हूँ उम्मीदों को... रूठे नसीब के आँचल में
बारिश हो कभी ऐसी भी... की भीगे एहसासात यहाँ 
जी यह चाहे रगों में भर दूं... लहू की बदले आग यहाँ
उमड़ पड़े कोने कोने से..... नई रुतो की बरसात यहाँ




मैं जो गुफ्तगू में बेमिसाल था...
हार गया हू खामोशी से उसकी...

सूखे पत्तों की लाश क़दमो में चरमरती है ऐसे
सर्द मौसम ले रहा हो हिचकियाँ आखरी जैसे...

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