Thursday, February 20, 2014

सच्चा एहसास

हो आँतों से लिपटी भूक
ऑर लबों से चिपकी प्यास
जन्नत लगे है छाँव भी
पानी की दो बूँद है ख़ास
तप्ता सूरज रोटी दिखे
बारिश बने आब-ए-हयात...
है जज़बो की शिद्दत बेमायने
जब खाली पड़े हो पयमाने,,,
जब जान सको अहमियत क़तरे की
जब ज़र्रे की क़ीमत पहचानो
फिर भी गर मुहब्बत आए रास
तब मानो यह सच्चा एहसास....



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