Tuesday, March 18, 2014








ज़िंदगी में लिपटी धूप ना दे
अपने बदन की परछाई दे दे
पहचान सके चेहरे पर चेहरा
आँखो को वो आशनाई दे दे
क्या होगी दुनिया की रौनक
दिल को थोड़ी रोश्नाई दे दे
करदे मेरी चाहत का फ़ैसला
फिर कशमकश से रिहाई दे दे
तेरे बाद कुछ और ना देखूं
आँखो को ऐसी बिनाई दे दे


जी ले उस रोशनी में जो हिजाब से छन के आती है

यह वो कशिश है जो हया पहन के आती है............. shaista

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