मुझे जुनून की हद के पार ले जाने को
तेरी मुहब्बत का आगाज़ ही काफ़ी है.
जो थपक दे मेरे रोते बिलखते दर्द को
ऐसे सुकून को तेरा सीना गुदाज़ काफ़ी है
करने को मुझे हर पल खुद से गाफिल
तेरी सांसो का मद्धम साज़ काफ़ी है
जान! मेरा ज़ब्त-ओ-गुरूर आज़माने को
तेरा नींद में डूबा हुआ अंदाज़ काफ़ी है
कौन काफ़िर चाहता है एक उम्र का जीना
तेरे साथ का एक लम्हा उम्र दराज़ काफ़ी है
किसी और की आँखों में सुर्कुरू क्यों होना
Tooooooooooooooooooooo good :-)
ReplyDeleteThanks amrit:)
DeleteBahot khoob
Deletebahot shukriya :)
Deletedeep... nicely projected
ReplyDeletethank you so much :)
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