~~इनकार~~
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अपने एक इनकार से तेरी
लौ देती आँखो को
यूँ मध्धम पड़ते देखा था
जैसे दूद-ए-शमा-ए-कुश्ता
लड़खड़ाया हो लौ के बुझने से
जैसे फ़ना हो जाए शबनम
पर्ताव-ए-खूर के छू लेने से
जैसे छीन ले खिज़ा
बर्ग-ए-गुल की रानाई को
तिलिस्म -ए-बहार से ...
अपने एक इनकार से तेरी
लौ देती आँखो को
यूँ मध्धम पड़ते देखा था...
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अपने एक इनकार से तेरी
लौ देती आँखो को
यूँ मध्धम पड़ते देखा था
जैसे दूद-ए-शमा-ए-कुश्ता
लड़खड़ाया हो लौ के बुझने से
जैसे फ़ना हो जाए शबनम
पर्ताव-ए-खूर के छू लेने से
जैसे छीन ले खिज़ा
बर्ग-ए-गुल की रानाई को
तिलिस्म -ए-बहार से ...
अपने एक इनकार से तेरी
लौ देती आँखो को
यूँ मध्धम पड़ते देखा था...
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`कहने को नमक दोनो मे है, तेरे चेहरे मे भी मेरे आँसू मे भी...
तेरी नमकीन रंगत शहद -शहद , मेरे आँसू खारे - खारे हैं...
तेरी नमकीन रंगत शहद -शहद , मेरे आँसू खारे - खारे हैं...
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रात के सीने मे
चाँद की धड़कने पिन्हा' हैं
हर साँस पर
चाँदनी के शरारे
रेत की मानिंद
आसमान के पहलू मे
बिखर बिखर जाते हैं
कुछ घूँट
दरिया की लहरो के
होंठो पर
मोतियों से चुभ जाते हैं
ओर कुछ मेरी आँखो मे
तुम्हारी याद के
आँसू बन कर...
चाँद की धड़कने पिन्हा' हैं
हर साँस पर
चाँदनी के शरारे
रेत की मानिंद
आसमान के पहलू मे
बिखर बिखर जाते हैं
कुछ घूँट
दरिया की लहरो के
होंठो पर
मोतियों से चुभ जाते हैं
ओर कुछ मेरी आँखो मे
तुम्हारी याद के
आँसू बन कर...
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आँसुओ के हमराह कुछ ख्वाब मेरे रिस्ते गए
खुशियों की उम्मीद मे दर्द भी पिसते गए
हसरतो की छाँव निचोड़ दी दर पे तेरे सर-बसर
और दुआएं अपनी हम सजदे में यूँ घिसते गए....
खुशियों की उम्मीद मे दर्द भी पिसते गए
हसरतो की छाँव निचोड़ दी दर पे तेरे सर-बसर
और दुआएं अपनी हम सजदे में यूँ घिसते गए....
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अपनी सांसो से तेरी खुश्बू को पी रही हूँ मैं
रिस जाती है जो धड़कन तेरे एक आह भरने से
उसी धड़कन के नक्श-ए-पा पर ज़िंदगी जी रही हू मैं...
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सूरज की अब-तार सुलगती शुआएं
जी उठती हैं तेरे गालों के लम्स से
जैसे दहक उठे चाँद -ए -उरूसी
छू लेने से शोलों से शम्स के....
जी उठती हैं तेरे गालों के लम्स से
जैसे दहक उठे चाँद -ए -उरूसी
छू लेने से शोलों से शम्स के....
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तू बेख़बर नींद मे बारहा कर, करवट बदल लेता है...
मेरा दिल तड़प्ता है, आँखो मे कोई ख्वाब मचल लेता है ....
तेरी करवट के दोश पे तराश लेती हूँ माज़ी की हसीं यादों को
मेरे अंदर इश्क़ रोता है... अपने होंठ कुचल लेता है...
मेरा दिल तड़प्ता है, आँखो मे कोई ख्वाब मचल लेता है ....
तेरी करवट के दोश पे तराश लेती हूँ माज़ी की हसीं यादों को
मेरे अंदर इश्क़ रोता है... अपने होंठ कुचल लेता है...
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आँसुओं की सूरत
टपकते ख्वाब थे
या तेरी आँखो से गिरते अँगारे...
तुम ख्वाब देखने की बात करते हो...
मेरा दामन तार तार है...
बादलो क साथ पानियों से
मेरी आँखे झुलस गई ...
मेरा दामन सुलग उठा....
अबके बारिश मे वो आग थी...
ख्वाबो क साथ साथ ..
दिल भी जल उठा....
टपकते ख्वाब थे
या तेरी आँखो से गिरते अँगारे...
तुम ख्वाब देखने की बात करते हो...
मेरा दामन तार तार है...
बादलो क साथ पानियों से
मेरी आँखे झुलस गई ...
मेरा दामन सुलग उठा....
अबके बारिश मे वो आग थी...
ख्वाबो क साथ साथ ..
दिल भी जल उठा....
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ख्वाइशों के सीने में ख्वाबों का ईधन भरते रहे...
ख्वाइशें जीती जाती हैं और हम मरते जाते हैं....
ख्वाइशें जीती जाती हैं और हम मरते जाते हैं....
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एक रिश्ता
बाज़ाहिर तो यह ज़ाहिर है
मेरा तलबगार है तू
मगर तू कब यह समझेगा
मेरे दिल की पुकार है तू
निगाहों में सैलाब सा
इश्क़ का उनवान ठहरा है
बेनाम सा यह रिश्ता
तेरे मेरे नाम सा गहरा है
इस रिश्ते की जिल्द पर
तेरा लम्स चाहा है
हाय मैने क़मर की आगोश में
दहकता शम्स चाहा है
नक्श हैं तेरी उंगलियों के निशान
मेरे बाज़ुओं के पोर पोर में
डूब गई है हर आवाज़
तेरी लरज़ती सांसो के शोर में
क़यामत गुज़र रही मुझपे
मैं जानू या खुदा जाने
या तुझको मुझको छू के गुज़रता
लम्हा वो जुदा जाने
बाज़ाहिर तो यह ज़ाहिर है
मेरा तलबगार है तू
मगर तू कब यह समझेगा
मेरे दिल की पुकार है तू
निगाहों में सैलाब सा
इश्क़ का उनवान ठहरा है
बेनाम सा यह रिश्ता
तेरे मेरे नाम सा गहरा है
इस रिश्ते की जिल्द पर
तेरा लम्स चाहा है
हाय मैने क़मर की आगोश में
दहकता शम्स चाहा है
नक्श हैं तेरी उंगलियों के निशान
मेरे बाज़ुओं के पोर पोर में
डूब गई है हर आवाज़
तेरी लरज़ती सांसो के शोर में
क़यामत गुज़र रही मुझपे
मैं जानू या खुदा जाने
या तुझको मुझको छू के गुज़रता
लम्हा वो जुदा जाने
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सर्दी गरमी बारिश को महसूस ना कर पाऊँ
ऐ काश मुझे फिर वह ,पहली सी मुहब्बत हो जाए.....
ऐ काश मुझे फिर वह ,पहली सी मुहब्बत हो जाए.....
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सुन्दर कविता
ReplyDeletethanks so much sir :)
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