Thursday, March 12, 2015



#तेरी मेरी उल्फ़त #

फ़ज़ा की महकी आग़ोॆश में जैसे जश्न ए बहारा है
पतझड़ की ओट से कलियों ने रगों को पुकारा है

नारंगियां शम्स ए शुआंओं के पोरों से चुनी हैं  मैने
चादंनी चादं के रौशन चश्म के कोरों से चुनी हैं मैने

सब्ज़ रगं छिटक उठता है उफ़क की पेशानी से
सुर्ख़ियाँ छन के उतरती हैं मेहँदी की ज़बानी से

रगं ए हया समेट के  दुल्हन के कामिनी आँचल से
ज़र्दी चुन ली है सरसों की मतवाली पायल से

तेरे हुस्न  के हर ख़म को यूँ संवारा  करे हैं  हम
ख़ुदाई रगों को लुटा के तुझपे ग़ुज़ारा करे हैं हम

मेरे इश्क़ का हर रगं क़ौस ए कज़ह की तर्जुमानी है
तेरे जिल्द से रूह तक उतरे यह जज़्बा ए रूहानी है

तेरी मेरी पहली  उलफ़त की देख यह कैसी होली है...
तेरे होठों पर मेरी सांसों से उभरी कोई रंगोली है....

क़ौस ए कज़ह: rainbow
तर्जुमानी: translation
उफ़क: horizon
चश्म के कोरों: corners of eyes
शम्स: sun
शुआंओं: sunrays

Shaista

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