Saturday, March 15, 2014




जिसमे तू ना हो मुझे ऐसे मुस्तक़्बिल की सच्चाई  ना दे
छीन ले क़ूवत  सुनने  की गर आवाज़ तेरी सुनाई ना दे
तेरी उम्मीद,तेरा इश्क़,तुझे पा लेने के आसरे पर ज़िंदा हूँ 
जहाँ देखूं तुझे देखूं, तेरे सिवा कुछ देखूँ ऐसी बीनाई ना दे


वो रोई काँधे से मेरे लग कर किसी और के लिये.......
और लोग समझते रहे दरमियाँ हमारे इश्क़ गज़ब है...





उसकी निगाहों में हुमकती अंगड़ाईयों के मौसम का ख़याल करने लगे
थक कर के जो सिमट आईं वजूद में उन नींदों से सवाल करने लगे
हया में उसकी उतरते देख क़ुदरत की मुस्कराहट के कई हज़ार रंग
हम अपना दिन,अपनी रात,अपनी तन्हाई, और बदन गुलाल करने लगे




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