Thursday, March 19, 2015




~~माँ अब भी तेरी याद आती है~~
मेरे गाँव में
नीम की छाँव में
रिम-झिम हसंते सावन में
सोन्धे महके आँगन में
बचपन मेरा पलता गया
कच्ची मिट्टी ख़ुद पर मलता गया
वह छाँव आज भी ज़िंदा है
जैसे शाख़ से लिपटा परिंदा है
धूप के क़तरे छाँव को पीते हैं
मेरे आँसू बचपन को जीते हैं
उस छाँव से आह अब दूर हूँ मैं
सब कहते हैं मग़रूर हूँ मैं
अब भीगे तकिये पे छाँव उतरती है
धूप सी यादें आंहें भरती हैं
माँ तेरी आग़ोश नहीं है अब
अक्सर कटती नहीं है शब
एक पेड़ लगाया आँगन में
पर बरसात नहीं है सावन में
गुनगुन सी धूप झुलसाती है
माँ अब भी तेरी याद आती है

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