Sunday, March 9, 2014







वो तेरी एक नज़र


आज भी भूलती नही
वो तेरी एक नज़र
वो मनचली सी दोपहर
तेरी आँखो का सहर
नौखेज़ नैन- नक्श की राह पर
मैं लड़खड़ा के था गया ठहर
क़ैद हूँ मैं आज भी, जाँ मेरी
मेरी जान क़ैद है इनमे
तेरी होटो की लरज़िश में
तेरे पलकों की जुम्बिश में
तेरे बालों के वो पेंचो-खम
ऐ हम-नफस सुन ले मगर
तू ही है वो चारा-गर 
हाँ मेरा है चरागर....






तेरे अल्फाज़ों के प्यालों में
तेरे तसव्वुर के हवाले है
भर के जाम जज़्बातों के 
पैकर-ए-हुस्न में ढाले हैं
ख्याले- हुस्न उभरता है
तेरे लबों के मोतियों में
इन लफ़ज़ो के नशे मैने 
कितने मैखाने पी डाले हैं



तेरे ख्वाबों की तिश्नगि में
बेख्वाब मेरी आँखें हैं
इक तेरी महेक पाने को
आबाद मेरी साँसें हैं
यादें तेरी क़ुरबत की
हैं धड़कती मेरे इस दिल में
तेरी रातों में घुलने को
बेताब मेरी रातें हैं.....!!


मार्च का मौसम यानी फूलों का ..और इम्तहानों का मौसम...

भंवरे की गुंजन सी लगती है तेरे पढ़ते होटो की आवाज़....



मूह निकाल कर कलियों से सरसों ओर टेसू के फूल....
हवा की साँसों मे घुलने को बेक़रार बैठे हैं..

तू अगर ढल जाए मेरे पहलू शाम की तरह...
मैं तुझे रात की मानिंद खुद मे पिघलता देखूँ ...





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