जो हुमकती है घटाओं की सुरमई गोद में
बादलों के होंटो के चटखारो की आवाज़ है
उठती है गीली मिट्टी की महकी आगोश से
ज़मीन के बुझते अंगारों की आवाज़ है
वो चिटकना चाँदनी का धुले निखरे अर्श पर
किसी की दुआ से टूटते तारों की आवाज़ है
सरगोशी नर्म हवाओं की फूलों के आगोश में
भंवरे सी गूँजती सब्ज़ बहारों की आवाज़ है
दो दिलों की मुहब्बत से घर मे जो रौनक है
तनहाईयाँ थपकती दर-ओ-दीवार की आवाज़ है
लहरों की अठखेलियाँ एक दूसरे के गालों पर
कल कल करती नदियों के किनारों की आवाज़ है
बादलों के होंटो के चटखारो की आवाज़ है
उठती है गीली मिट्टी की महकी आगोश से
ज़मीन के बुझते अंगारों की आवाज़ है
वो चिटकना चाँदनी का धुले निखरे अर्श पर
किसी की दुआ से टूटते तारों की आवाज़ है
सरगोशी नर्म हवाओं की फूलों के आगोश में
भंवरे सी गूँजती सब्ज़ बहारों की आवाज़ है
दो दिलों की मुहब्बत से घर मे जो रौनक है
तनहाईयाँ थपकती दर-ओ-दीवार की आवाज़ है
लहरों की अठखेलियाँ एक दूसरे के गालों पर
कल कल करती नदियों के किनारों की आवाज़ है
No comments:
Post a Comment