Saturday, March 15, 2014





उफ्फ यह तुम और यह नींद

थपकीयों में भर भर नींद
उंड़ेल दी पलकों पर सारी
पलकें भीगी ख़याल भीगे
भीगी मेरी तकिया सारी
सो जाऊं तो वो खोती है
ना सोउँ तो नींदें रोती हैं
समेट कर आँखो में खुमारी
हाय यह इश्क़ बड़ी बीमारी
उसे ज़ेरे लब पुकारा
कैसे सोउँ मैं बेचारा
छुपा ले अपनी आगोश में  मुझको
ठहर जाए यह बादल आवारा
टिक जाओगी गर तुम तो ही यह मेरी नींद टिकेगी
सुकून से मेरा इश्क़ रहेगा सुकून से यह उम्र कटेगी


उफ्फ यह तुम और यह नींद




जिसमे तू ना हो मुझे ऐसे मुस्तक़्बिल की सच्चाई  ना दे
छीन ले क़ूवत  सुनने  की गर आवाज़ तेरी सुनाई ना दे
तेरी उम्मीद,तेरा इश्क़,तुझे पा लेने के आसरे पर ज़िंदा हूँ 
जहाँ देखूं तुझे देखूं, तेरे सिवा कुछ देखूँ ऐसी बीनाई ना दे


वो रोई काँधे से मेरे लग कर किसी और के लिये.......
और लोग समझते रहे दरमियाँ हमारे इश्क़ गज़ब है...





उसकी निगाहों में हुमकती अंगड़ाईयों के मौसम का ख़याल करने लगे
थक कर के जो सिमट आईं वजूद में उन नींदों से सवाल करने लगे
हया में उसकी उतरते देख क़ुदरत की मुस्कराहट के कई हज़ार रंग
हम अपना दिन,अपनी रात,अपनी तन्हाई, और बदन गुलाल करने लगे




Friday, March 14, 2014



.......मुझे चुनमुन कहने वाली
चुनमुन तुम्हे पता है......
क़ब्र में मुर्दे इंतज़ार करते हैं
कोई अपना आए उनके घर ..बेक़रार रहते हैं
छोटी सी थी मैं..मेरी माँ..मेरा "बचपन" मर गया था
ज़िंदगी के हिसार से छूट कर....रूहों के घर गया था
और पापा.... उनकी उंगलियों की नर्माहट 
दम तोड़ गई थी...
"बेआसरा"...."यतीम" जैसे बेहिस लफ्ज़ 
मुझसे जोड़ गई थी...
मैं चीखती रही, छटपटाती रही
रोती रही....... बिलबिलती रही
माँ बच्चों को तड़प्ता कहाँ छोड़ सकती है
भला पीठ अपनी क़ब्र से कैसे जोड़ सकती है?
मैं जाती हूँ अक्सर मुर्दों के जहान में
उसी क़ब्रिस्तान में
औरतों का जाना माना है वहाँ...
मेरा दिल....... मानता है कहाँ...
जाती हूँ...रात में...
उनका ज़ब्त आज़माने
.........लेटकर सिरहाने
उनसे खूब बातें करती हूँ
कहती हूँ...
मौत से नहीं अपनी तन्हाइयों से डरती हूँ
तू ना आ सके तो .............मुझको बुलाले माँ
मैं मुद्दत से नहीं सोई... अपने पास सुलाले माँ
दीवानावर क़ब्र की मिट्टी को ............चूमती हूँ
उसको छू रही हूँ.........इस ख़याल से झूमती हूँ
रात क़ब्र पर जीने को.... सारा दिन मरती हूँ
एक बार तुझे पा जाऊं सारी कोशिश करती हूँ
.....
.......मुझे चुनमुन कहने वाली
अपनी माँ से जा मिली है
इस दर्द पर आँखे मेरी ना सूख सकी ना गीली हैं
वो कहती थी मुर्दे सुनते हैं
आज मैं बातें करता हूँ....
क्या वो क़ब्र से सुनती है......
क्या वो क़ब्र से सुनती है......






एक गुफ्तगू पत्ते की फूल से ...........


अपने बदन का खून निचोड़ के 
आ तुझे शादाब कर दूँ
सुर्ख रंगो का घूँघट ऊढा के
हर कली का ख्वाब कर दूँ
बनके पैरहन उन शोख तराशी शाखों पर
सजा के वजूद के हर खम को
खिले तू दियों की तरह मुंडेर पर
तू मदहोश है अपनी जवानी में
भड़का के आग पानी में
मेरी रगें टूटती हैं अब
साँस भी छूटती है अब
मैं पतझड़ की आहट पर बिखर जाऊँगा
शाखों से टूट के तुमसे बिछड़ जाऊँगा
ज़मीन मुझे खुद में चुभो लेगी
फिर भी सनम कहाँ तुझको भूल पाऊँगा
अपने तन पे इंतेज़ार पिरो लूँगा
क़ब्र पर दिल-ए-बेक़रार सॅंजो लूँगा
जब जश्न-ए-बाहर का मौसम गुज़रेगा
शाखों से फूलों का पैरहन उतरेगा
अपनी बेरंग पंखुड़ियों समेत तू मुझपे उतरेगी
तेरी सुर्खी मेरी शोखी के दहन से गुज़रेगी
तब मैं मुहब्बत पाऊँगा
और हमेशा के लिए सो जाऊँगा

Wednesday, March 12, 2014








जो हुमकती है घटाओं की सुरमई गोद में
बादलों के होंटो के चटखारो की आवाज़ है
उठती है गीली मिट्टी की महकी आगोश से
ज़मीन के    बुझते अंगारों की आवाज़ है
वो चिटकना चाँदनी का धुले निखरे अर्श पर
किसी की दुआ से टूटते तारों की आवाज़ है
सरगोशी नर्म हवाओं की फूलों के आगोश में
भंवरे सी गूँजती सब्ज़ बहारों की आवाज़ है
दो दिलों की मुहब्बत से घर मे जो रौनक है
तनहाईयाँ थपकती दर-ओ-दीवार की आवाज़ है
लहरों की अठखेलियाँ एक दूसरे के गालों पर
कल कल करती नदियों के किनारों की आवाज़ है








Just wait O Angel Of Death...
Just wait O Angel of Death
still....
I have not lived enough
i have not died enough
my mother..who would look after her?
ah! who would hold my father
...whom nothing could deter?
i have not yet lived enough..
my Beloved...he would die
how would he survive?
and..and my son..ah my 4 years old
who would answer his sigh?
who would feed him...who would lull?
and who would his anger cull?
he doesn't sleep without me
who would reap his laughter after me?
his childhood would wither
it would devastate hither and thither
and for my Love! 
who would answer his groping fingers in bed?
who would pacify him 
when he is all red?
his anxiety on his forehead..
is licked by my fingers
unless assuaged by me
it lingers...

my little darling...who would decipher his cries?
it's for food, for games or for fries
to be held in my cozy lap
let my lips his tears dab
the uneasiness, the queasiness
who would see?
answer me..answer me...
my life's love n my delicate dove
shall i tell both of them i love
i have two ..not one kid
for my hubby too does
like my kid did..
O angel... 
please spare me some more years
let them get addicted to someone dear
so i peacefully sleep in shroud
my back rests deep in grave
among decaying crowd
Just wait O Angel Of Death...
....

Monday, March 10, 2014




सोचों को फिर परवाज़ दो

क़लम में खून भर रही हूँ 
थोड़ा जुनून भर रही हूँ
इन आँखो में जो पानी है
मेरी मशक्कत की कहानी है
ना वक़्त साज़गार था
मौसम भी नागवार था
अंधेरोन से ना शनसाई थी
नज़रों में ना बीनाई थी
तसल्ली टकरा कर कानों से
ज़मीन की गोद में समाई थी
जमे हुए क़दम थे
था रुका हुआ सा वक़्त
इन क़दमों को रवानी मिल जाए
ये वक़्त पानी सा बह जाए
उस रब से यही दुहाई थी
कहाँ तेरी मसीहाई थी
फिर माँ की गोद नज़र आई
मैं रेत की मानिंद ढह आई
सुन बेआवाज़ तड़प मेरी
उंगलियाँ पेशानी पर फेरी
सीने से लगा कर बहलाया
भोली सी मुस्कान से समझाया
देख जहाँ तेरे आँसू गिरे
वहाँ वहाँ हैं फूल खिले
यह फूल हैं उम्मीदों के
बेआराम रातों की नींदों के
दिल तेरा जब जब था घबराया
खुद फलक़ से खुदा उतार आया
आज़माइश के लम्हें अब
गुज़ार चुकी है तू
मुश्किलें भी माँ के सदक़े 
अब वार चुकी है तू....
साँसों में भर आवाज़ को
सोचों को फिर परवाज़ दो









सुना है तुम सुकून के सौदागर हो
दिल का क़रार बेक़रार करते हो
तेरी जूस्तजू में नींदें गवाँ बैठे हम
गोया इश्क़ का बीमार करते हो
नज़र उठ कर पलटना भूल जाती है
तौबा तौबा निगाहों से वार करते हो
किस शौक से तबाह हुए तेरे हाथों
वल्लाह! क़त्ल भी ख़ुशगवार करते हो


हमने निचोड़ डाला दर्द- ओ -खून जिगर का लफ़्ज़ों मे अपने...
.................और वो बस "वाह वाह" कर के रह गाए...........


बादल बारीशों में बह गए
मेरे आँचल में सारे ढह गए
फिर भी खिले ना मुरझाए ख्वाब
बस हज़ार शिकवे रह गए..!!

Sunday, March 9, 2014







वो तेरी एक नज़र


आज भी भूलती नही
वो तेरी एक नज़र
वो मनचली सी दोपहर
तेरी आँखो का सहर
नौखेज़ नैन- नक्श की राह पर
मैं लड़खड़ा के था गया ठहर
क़ैद हूँ मैं आज भी, जाँ मेरी
मेरी जान क़ैद है इनमे
तेरी होटो की लरज़िश में
तेरे पलकों की जुम्बिश में
तेरे बालों के वो पेंचो-खम
ऐ हम-नफस सुन ले मगर
तू ही है वो चारा-गर 
हाँ मेरा है चरागर....






तेरे अल्फाज़ों के प्यालों में
तेरे तसव्वुर के हवाले है
भर के जाम जज़्बातों के 
पैकर-ए-हुस्न में ढाले हैं
ख्याले- हुस्न उभरता है
तेरे लबों के मोतियों में
इन लफ़ज़ो के नशे मैने 
कितने मैखाने पी डाले हैं



तेरे ख्वाबों की तिश्नगि में
बेख्वाब मेरी आँखें हैं
इक तेरी महेक पाने को
आबाद मेरी साँसें हैं
यादें तेरी क़ुरबत की
हैं धड़कती मेरे इस दिल में
तेरी रातों में घुलने को
बेताब मेरी रातें हैं.....!!


मार्च का मौसम यानी फूलों का ..और इम्तहानों का मौसम...

भंवरे की गुंजन सी लगती है तेरे पढ़ते होटो की आवाज़....



मूह निकाल कर कलियों से सरसों ओर टेसू के फूल....
हवा की साँसों मे घुलने को बेक़रार बैठे हैं..

तू अगर ढल जाए मेरे पहलू शाम की तरह...
मैं तुझे रात की मानिंद खुद मे पिघलता देखूँ ...





  कोई ख़ला जब माहौल में शोर के बीच बनी दरारों में बैठने लगती है , तो यूं लगता है, बेचैनी को शायद लम्हाती क़रार आने लगा है , शायद होंठ जब चुप...