Thursday, November 23, 2023

 कोई ख़ला जब माहौल में शोर के बीच बनी दरारों में बैठने लगती है , तो यूं लगता है, बेचैनी को शायद लम्हाती क़रार आने लगा है , शायद होंठ जब चुप हो तो ज़हन के पास नमालूम सवाल नहीं होंगे , जवाबों की मशक्कत भी नही होगी , मगर एक कभी ख़त्म ना होने वाला सिलसिला होता है , जो बस सवालों की फेहरिस्त में उलझा अपने होने का मक़सद तलाशता रह जाता है, और ऐसा निगाह ए हद में दूर तक नहीं होता जो जवाब दे सके ।

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