Monday, March 23, 2015




















**कि तेरे मेरे दरमियान **
कि तेरे मेरे दरमियान
ये जो पुकार का एक सिलसिला है
कि जब जब तेरी निगाह उठे
मेरे वजूद का गोशा गोशा
लफ़्ज़ बन के तड़प उठता है
तेरी ख़मोशी में आवाज़ बन के
जी उठने के लिये....
बेतरतीब होती दड़कनें
बज़िद हो रगों में टूटती हैं
तेरे सीने में सासं बन के
धड़कने के लिये...
कितने बोसे हैं दर्ज
तेरे नाज़ुक क़दमों की रहनुमाई को
तेरे हमराह
परछाईं बन के चलने के लिये....
Bosey: kiss
Rahnumai: guidance
Bazid: obstinate
Gosha: corner

  कोई ख़ला जब माहौल में शोर के बीच बनी दरारों में बैठने लगती है , तो यूं लगता है, बेचैनी को शायद लम्हाती क़रार आने लगा है , शायद होंठ जब चुप...