Thursday, November 23, 2023

 कोई ख़ला जब माहौल में शोर के बीच बनी दरारों में बैठने लगती है , तो यूं लगता है, बेचैनी को शायद लम्हाती क़रार आने लगा है , शायद होंठ जब चुप हो तो ज़हन के पास नमालूम सवाल नहीं होंगे , जवाबों की मशक्कत भी नही होगी , मगर एक कभी ख़त्म ना होने वाला सिलसिला होता है , जो बस सवालों की फेहरिस्त में उलझा अपने होने का मक़सद तलाशता रह जाता है, और ऐसा निगाह ए हद में दूर तक नहीं होता जो जवाब दे सके ।

 जब आपके हाथों से दुनिया की रफ़्तार छूट रही हो, और सफ़र अपने अंदर, अपनी ही जानिब हो, आपका होना आपके कदमों तले जमा होने लगे , होना बेमक़सद हो जाए और जो होना चाहते हैं , वो नामालूम सी कसक सा पहरों पहर चुभता सा हो ,तो कैसी कैफियत होती है?? वैसी ही है !!

जब रोशनी इतनी हो कि अंधेरा भी नज़र ना आए , और अंधेरे भी बेख़बरी के आलम का ही हिस्सा हों , जब किसी के हाल पूछने पे आंसू भी ना आते हों, जब ख़ुदा की दहलीज़ की जानिब सफ़र हो, मगर ख़ुदा रास्ता ना बताता हो, तो कैसी कैफ़ीयत होती है? वैसी ही है !!
जब अपने अंदर सफ़र करते हुए किसी दूसरे सफ़र की उम्मीद में , क़दम तो आगे बढ़ चुके हों , मगर दूजा पांव रास्ता मांगे, और रास्ता अपने पांव खींच ले , और मायूस होके लौटना चाहो , और अपना आप भी ख़ुद को तस्लीम न करे, तो कैसी कैफ़ीयत होती है?? वैसी ही है !!

एक "आम सी ज़िंदगी" 

जब "वो "होती है,

तो महसूस नहीं होती ,

सब पर ध्यान होता है ,
"सिवा उसके!"
मौसम बदलते जाते हैं,
उलझनों में क़ैद
सांसे मद्धम चलती हैं,
फेफड़ों तक पांव पसारने की मशक्कत में,
योग और ध्यान तक आती हुई सांसे,
सब कुछ छू आती हैं,
"सिवा उसके! "
हाथों से हाथ छू जाए उनके
तो सिहरन भी
ना महसूस हो,
एक छुअन भी अनछुई हो जाती हैं,
सब कुछ छू कर भी
"सिवा उसके !"
नन्हें हाथों को बेसाख्ता गालों से लगा लेना
मासूम वजूद को सीने में भींच लेना
ये सब होते हुए भी
नमौजूद सा होता है
"सिवा उसके "!
वो जब नहीं होती, छुअन को तड़पता वजूद
मासूम की नन्ही बाहें को पुकारता
कितना याद करता है "उसको ",
एक "आम सी ज़िंदगी को" !
एक "आम सी ज़िंदगी"
कितनी कीमती होती है
मुझ से पूछो!

  कोई ख़ला जब माहौल में शोर के बीच बनी दरारों में बैठने लगती है , तो यूं लगता है, बेचैनी को शायद लम्हाती क़रार आने लगा है , शायद होंठ जब चुप...