Wednesday, March 12, 2014








जो हुमकती है घटाओं की सुरमई गोद में
बादलों के होंटो के चटखारो की आवाज़ है
उठती है गीली मिट्टी की महकी आगोश से
ज़मीन के    बुझते अंगारों की आवाज़ है
वो चिटकना चाँदनी का धुले निखरे अर्श पर
किसी की दुआ से टूटते तारों की आवाज़ है
सरगोशी नर्म हवाओं की फूलों के आगोश में
भंवरे सी गूँजती सब्ज़ बहारों की आवाज़ है
दो दिलों की मुहब्बत से घर मे जो रौनक है
तनहाईयाँ थपकती दर-ओ-दीवार की आवाज़ है
लहरों की अठखेलियाँ एक दूसरे के गालों पर
कल कल करती नदियों के किनारों की आवाज़ है






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