Friday, February 21, 2014



कहा मैने, थाम के दामन बारीशों का ...बड़ी बेक़ारारी है
पसंद तुम थी, मिली भी तुम ...............मगर दुश्वारी है
ये ख्वाइश थी, तू बरसे टूट कर ..........,घटाओं की सूरत
जल गई हैं आँखे मुसलसल की झड़ी से......अब यह लाचारी है

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