Friday, February 21, 2014




बना एक रिश्ता रूहानी सा..

तेरे गुदाज़ दहन से गुज़र कर
ख़याल तेरे होठों पर पिघल कर
जी उठते है जब अल्फ़ाज़ में
ढाल कर सुरों को साज़ में
तू झुक आ ढलती शाम तले
चाँद उतरे जैसे बाम में तले
क़रार मुझमे उतार दे
नई रूह से फिर संवार दे
उंगलियाँ लहरों से जब खेलें हैं
नदियों के भी किनारे बोले हैं
हया का घूँघट ओढ़ के तू
दिल को दिल से जोड़ के तू
बक्श दे लम्स नूरानी सा
बना एक रिश्ता रूहानी सा
बना एक रिश्ता रूहानी सा...

गुदाज़: भरे हुए
लम्स: छुअन
बाम: छत


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