Monday, June 16, 2014

~दूधिया गजरे से बादल~~

सुरमई रात ने दूधिया गजरे से बादल
अपने गेसुओ में गूँथ रखा हैं
मोतिए, मोगरे, बेले सा इश्क़
खुश्बुओं में भीगा के चखा है
घुँगरू से छनक जाते हैं बादल
चाँद के एक शर्माने से
जैसे छलके फूल से शबनम
या चाँदनी, चाँद के पयमाने से
गद्ले से बादल, हो रात का आँचल
या गज़ाली आँखो का, हो फैला सा काजल

चाँद के सीने से लिपटी
हो बदन चुराती चाँदनी
कमर के खम पर हवाओं का
रुख़ बदलती चाँदनी
बलखाती, झिलमिलाती
थिरकति पिघलती चाँदनी

यहाँ वहाँ सितारे बिखरे
जैसे टूटे गजरे से फूल
होंठों से चुगते उन फूलों को
चाँद के बदन की, चाँदनी सी धूल
निगाहों से पी कर
सांसो मे सी कर
इस मंज़र का  हिस्सा हूँ
चाँद की दुनिया का
चाँदनी में सिमटा
जैसे मैं बादलों का क़िस्सा हूँ

#drshaista

Monday, May 26, 2014



उफ़ तेरी मुहब्बत~
तेरी पलकों पेर होंठ रख कर
रिस जाऊं ख्वाबों में तेरे
पसीने की बूँद बूँद उभरू
जज़्ब हो जाऊं रुखसारों पे तेरे
धीमी सी उभरती आँच की तरह
बुझते चिराग की लौ की तरह
धीरे धीरे अँधेरो को पीती रही
तेरे तसवउर की रोशनी में जीती रही
तेरी मन्कूहा बनके
तेरे निकाह मे आके
तेरी आगोश के हिसार में
पल पल गुनगुना के
हयात को आब ए हयात समझा
तेरे दिन को दिन
रात को रात समझा
तेरे बदन के मख़मूर -ओ-मखमली एहसास से
रूह तर है तेरे होंठो पर उभरी प्यास से
जब तेरे गुदाज़ बाज़ुओं में
मुहब्बत के सैलाब होते हैं
मेरी सांसो से रिहा
हज़ारो गुलाब होते हैं ...
तेरी मुहब्बत की ज़्यादती से
जो आँसू टपके चश्म-ए-तर से
तेरे होंठो से चुन लेने पर
वो भी शराब होते हैं...


Saturday, May 24, 2014


तेरे दिल तक जाती जो एक रहगुज़र है..
इसके हर ख़म मे जाँ,मेरी रूह का घर है...
इन निगाहों के हिसार मे हैं मेरे अनगिनत तवाफ़
इसी बंदगी के जुनून में अब ज़िंदगी का बसर है...



हैरान हूँ तेरी ज़ुल्फ़ो को अपने सीने पर परेशन देखकर
की यह आगाज़-ए-तूफ़ान है या की अंजाम -ए-महशर है

बा-ज़ाहिर थम गई है यह बेमक़सद ज़िंदगी लेकिन...
सांसो के होंठो पर ज़िक्र तेरा क्यों नही मरता....

तेरे दिल तक जाती जो एक रहगुज़र है..
इसके हर ख़म मे जाँ,मेरी रूह का घर है...
इन निगाहों के हिसार मे हैं मेरे अनगिनत तवाफ़
इसी बंदगी के जुनून में अब ज़िंदगी का बसर है...


मेरे तसव्वुर के दोश पे तेरी यादो की अंगड़ाई का आलम नl पूछ...
हर ज़र्रे मे अर्श-ओ - ज़मीन के नज़र आता है के तुम हो....

औलाद क आँसू कलेजा चीर देते हैं....
इलाही मेरा खून बह जाए उसके एक आँसू पे...

अपने दर्द को मुहब्बत का पयाम देती हूँ
तेरी यादों को अनगिनत लम्हें गुमनाम देती हूँ
सजा लेती हूँ तन्हाई कसक देते इन लम्हों से
उल्फ़त के इस रिश्ते को नाम-"बेनाम"देती हूँ....

~~जो किया करते थे पैरवी सच की
वोही झूठे करार दिए जाते हैं
जो मना लेते हैं तुझे रोता देखकर
वोही रूठे करार दिए जाते हैं
जो घुल गए पानियों से हर महफ़िल में
वल्लाह वोही अनूठे करार दिए जाते हैं~~


Tuesday, May 13, 2014



~~अब ना नींद है ..ना सुकून है....चाँद पर भी बेसुकूनी के साए हैं
उस चाँद के काले दाग मेरी हयात की आगोश में सिमट आए हैं...~~


~~बचपन माँ के वजूद से खूबसूरत था~~

इतवार की सुबह माँ के चूमने से ही होती थी..उनकी ढेरों लोरिया जिनमे "उठो लाल अब आँखे खोलो"..सबसे प्यारी लगती थी... इतवार का मतलब माँ का बहोत सारा दुलार ओर टी.वी के सामने रंगोली देखते हुए नाश्ता करना... या तेज़ आवाज़ में गाना सुनना... बहन से दूध की मलाई का झगड़ा करना...या माँ के हाथों... वो सब्ज़ी भी खा लेना जो सख़्त नापसंद होती थी...
ज़िंदगी कितनी बेफ़िक्र थी... हर मौसम खूबसूरत.... बारिश मे भीगना..धूप मे खेलना...जब नींद आए सो जाना....
अब ना नींद ..ना सुकून....चाँद पर भी बेसुकूनी के साए से हैं.... सब को खिलाना..सब को सुलाना.... बस यही मेरी नींद ओर भूक है.... बचपन माँ के वजूद से खूबसूरत था.... अब माँ के लिए भी माँ हो गई हूँ....


Mera naam "Shaista" hai ek paimana ...
Tu isme poora utar ke dekh...
Rooh-o- jism bicha kar rakhe hain ..
Kabhi mujhko chhu kar guzar ke dekh.....

तेरा नाम "शाइस्ता" है एक पैमाना ...
तू इसमें पूरी उतर के देख..
रूह-ओ-जिस्म बिछा कर रखे हैं ..
कभी मुझको छू कर गुज़र के देख...


Tum muhabbat karna
Hum ibaadat karenge...

तुम मुहब्बत करना
हम इबादत करेंगे...

~माँ बन के ही माँ की ममता पहचान पाई हूँ...
अपने क़दमो की जन्नत भी उसपे वार आई हूँ .~.

अपने दर्द को मुहब्बत का पयाम देती हूँ
तेरी यादों को अनगिनत लम्हें गुमनाम देती हूँ
सजा लेती हूँ तन्हाई कसक देते इन लम्हों से
उल्फ़त के इस रिश्ते को नाम-"बेनाम"देती हूँ....

When love melts into silence,
Heart beat dances to the rhythm of touch...


~एक ख़याल~
सुनो..क्या हमारे बीच फ़ासले बढ़ गए हैं? तुमने कितने रोज़ से मेरा चेहरा गौर से नही देखा...
मैं खिलते खिलते कब मुरझा गई! सिर्फ़ तुम्हारी एक भरपूर नज़र को खुद पर महसूस करने के लिए तुम्हारी पसंद के सारे रंग खुद पर जिला डाले..हर रोज़ तुम्हारी निगाहो को देखती हूँ, उनका पीछा करती हूँ..की जब तुम मुझे देखो तो मेरे चेहरे पेर एक इन्तिहाइ खूबसूरत मुस्कान हो..वो मुस्कान जो ज़िंदगी की सख्तियों की थकान उतार दे... मगर रोज़ मायूस होती हूँ.... मैं तुम्हें समेट लेना चाहती हूँ..मगर तुम बिखरते जाते हो.... किस तरह क़रार दूँ तुम्हे की तुम मुझे एक नज़र देख कर फिर मेरे बदन में जान डाल दो...मुझे जीने की वजह दे दो...


उसकी यादों में होठों पर एक आह होती है
तन्हा हूँ मैं,तन्हाइयों मे भी क़राह होती है
मेरी आह-ओ-क़राह को वो सुन नही सकता
जो कहता था की दिल से दिल को राह होती है

uski yaadon mein hontho per ek aah hoti hai
tanha hoon main, tanhaiyon mein bhi qaraah hoti hai
meri aah-o-qaraah ko woh sun nahi sakta
jo kahta tha ki dil se dil ko raah hoti hai


यह आँखे बंद होती हैं पलकों के गिलाफ में..
मिलते हो ख्वाब मे भी तुम क्यों हिजाब मे...

Yeh aankhe band hoti hain palko ke gilaaf mein..
Milte ho khwab me bhi tum kyon hijaab me...

एक बार पलट कर कह दो
तुझे मुझसे वास्ता कोई नही...
मुझ तक तुझको लेकर आए
क्या ऐसा रास्ता कोई नही...
अपने ख्वाबो की क़ब्र पर
आँसुओ के फूल लिए बैठा हूँ
मेरी आखरी हिचकी का वास्ता
ना कहना तेरा मुझसे राबता कोई नही...

Ek baar palat kar kah do
Tumko mujhse waasta koi nahi...
Mujh tak tumko lekar aaey
Aisaa raasta koi nahi...
Apne khwabo ki qabr per
Aansuo k phool liye baitha hu
Meri aakhri hichki k sadqe hi laut aa
Kya tera mujhse raabta koi nahi...

मौसम-ए-इश्क़ की हर करवट पर मौजूद हैं
मेरी मुहब्बत के निशान जो आँसुओं की सूरत ठहर गए

Woh neend Jo hoti thi bedaar maa ke choom leney se...
Ab aankhe jaag jaati hain, magar subah nahi hoti....

वो नींद जो होती थी बेदार माँ के चूम लेने से...
अब आँखे जाग जाती हैं, मगर सुबह नही होती....

pni dhadkano ki tarz per
Meri saanso ki hamnawai likh do....
sath qadam na chale to na sahi
Pal do pal ki rahnumai likh do....

अपनी धड़कनो की तर्ज़ पर
मेरी सांसो की हमनवाई लिख दो....
साथ क़दम ना चले तो ना सही
पल दो पल की रहनुमाई लिख दो....


Saturday, May 3, 2014





*अधूरापन*
कच्ची पक्की नींद की खुमारी में भी 
तू भूलता नहीं...
हर करवट पे तकीए की तरह तुझे 
बदन के इस ओट से 

उस ओट तक सीने से लगा के रखती हूँ..
सोते मे तुम बड़े प्यारे लगते थे....
सिरहाने तुम्हारी साँसों की महक 
भी आबाद रहा करती थी...
बेइख्त्यार तकिये पे उस खुश्बू को जगाया मैनें...
तेरी छुअन को भी खुद पे सजाया मैने
तुम्हारी सुबह मेरे भीगे बालों से बेदार होती थी
अब भीगे बालों से टपकता बूँद बूँद पानी 
मेरे आँसुओं को धो रहा है....
अब लौट आओ
रोम रोम मुंतज़ीर है...



~औरत~
~कभी जो गौर से अपनी शक़्ल देखती हूँ तो अपनी अम्मा का चेहरा नज़र आता है... वक़्त बीत जाता है..मगर औरत की कहानी...बदलने की नहीं.. बचपन से अम्मा को रोते बिलखते देखा... वो चुप रहती थी..हर घलत सही के जवाब में खामोश...अब्बा जो भी कहते सब सही ..फिर भी उनका हाथ उठ जाता....और अब...मैं.. मैं नए ज़माने की हूँ ..सोचती थी कभी ना सहूंगी अम्मा के जैसे ... आख़िर..आख़िर अपने पैरों पर खड़ी हूँ..मगर क्या बदला है...अम्मा चुप रहके पिटती थी ..ओर मैं ज़बान दराज़ी कर के...! अपना चेहरा जो आईने में देखती हूँ तो लगता है यह मेरा नहीं अम्मा का चेहरा है आँसुओं से तर- बतर.. ज़ोर ज़ोर से रगड़ के अम्मा का चेहरा छुड़ाना चाहती हूँ..उनकी क़िस्मत मिटाना चाहती हूँ अपने चेहरे से..मगर, औरत का नसीब...क्यों कर बदलेगा ..मुहब्बत को तरसती क़ब्र तक पहुँच जाती है...औरत...~

तेरी परछाई से उलझ पड़ी हूँ
तेरी हमनवाई का हक़ मेरा था ...मेरा है

एक वक़्त ऐसा था लड़कियों को आईना देखने की इजाज़त नही थी .. लेकिन लड़कियाँ खुद को ना निहारे
तो अल्हड़पन को कैसे पार करती... १ पैसे की सुर्खी खरीद लाती ओर चुपके से होंठों पर रगड़ के
मटके मे मुँह डाल देती... अंधेरे मटके के पानी में ढुंधलया सा अक्स जाने कैसी खुशी देता था...अपने कामिनी कमसिन से रंग में लबरेज़ खुद को हसीन मान के बेपनाह ख्वाब सजा लेती... खूबसूरत लगने का शौक़... सराहे जाने की आरज़ू जाने कितने सदियों से चली आ रही है...

Friday, May 2, 2014




पलकों पे रख के होंठ
तेरी नींदों मे घुल गई हूँ
हक़ीक़त के उस पार
ख्वाबों मे रूल गई हूँ
रिस रही हूँ तेरी जिल्द से
तेरे बदन के गोशे गोशे में
करके वज़ू आँसुओं से
तेरे इश्क़ मे धुल गई हूँ

  कोई ख़ला जब माहौल में शोर के बीच बनी दरारों में बैठने लगती है , तो यूं लगता है, बेचैनी को शायद लम्हाती क़रार आने लगा है , शायद होंठ जब चुप...