Wednesday, May 14, 2014
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कोई ख़ला जब माहौल में शोर के बीच बनी दरारों में बैठने लगती है , तो यूं लगता है, बेचैनी को शायद लम्हाती क़रार आने लगा है , शायद होंठ जब चुप...
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~~क्वारन्टाइन में एक माँ~~ कौन सी नज़र, नज़र ए आख़िर थी ये उस चौखट के सीने मे धसी आखरी ख्वाइश सी बेताब नज़र की गवाही मे ...
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कोई ख़ला जब माहौल में शोर के बीच बनी दरारों में बैठने लगती है , तो यूं लगता है, बेचैनी को शायद लम्हाती क़रार आने लगा है , शायद होंठ जब चुप...
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सोचों को फिर परवाज़ दो क़लम में खून भर रही हूँ थोड़ा जुनून भर रही हूँ इन आँखो में जो पानी है मेरी मशक्कत की कहानी है ...
जिंदगी और मौत के बीच का सच ........
ReplyDeleteपिसता हुआ खुद का वजूद !!
Bahot shukriya MUkesh ji
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