Wednesday, January 20, 2016



Kabhi dekha hai toone roi aankh ka manzar
Ki bhiigapan sulagta hai, din ko raat karta hai

Teri muhabbat jo be-had thi
Teri zyaadtiyon se kitni had tooti...

Less afraid than you appear
Feign and shiver, the mask you wear
In shreds n pieces my trust you tear
I singe n wriggle, n you fear mere..
इससे पहले की बेवफ़ा हो जाएं
तेरे इश्क़ में क्या से क्या हो जाएं
आ जीलें एक दूसरे की उल्फ़त को
क्या पता ये दर्द कल दवा हो जाएं
.


छाँव में लपेट कर
शुआओं से वार किया
झुलसा दिया बेरुख़ी से
उसने फ़िर इक़रार किया
दहलीज़ पर अपने जिस्म की
रूह कशमकश में है
अना को अपनी मार कर
क्यों उसको ना दयार किया....?


barf
यह जो क़दमो में सफेद बर्फ़ है
आबरू-ए फ़ज़ा है
जाने कितने सब्ज़ लम्हो की क़ज़ा है
या धड़कती यादों की ख़्वाब गाह है
जिनमे कभी ज़िंदगी रवाँ दवाँ थी
आज चुप है
क़ुदरत के रगों में दौड़ते फिरते लम्हों की
रवानगी जम सी गई है
हयात ए रवानी थम सी गई है
ज़र्द होंठों के पपड़ियों पर
हुमकती हैं कहानियाँ
सिसकती हैं वीरानियां
रस्म-ए-पज़ीराई को...
वो कमसिनी, वो लड़कपन
झुक चला है बोझ तले
बोझ है दयार का
दरख़्त ओ दीवार का
मदह परस्ती से प्यार का
वो हरारतें वो शरारतें
पी गई वो सर्दियाँ
वह सर्द मेहरी इन्सान की
मुहब्बत की, अख़लाक़ की
दौर ए जदीद का बहरापन
खो गया है शोर में
हुस्न ओ हवस का वहशीपन
पसरा हुआ चितचोर में
फिर उफक़ के पार
नर्म फाहों सा आफ़ताब है
हर सवाल का जवाब है
हसरतों से हामिला
भेदता हर नका़ब है
चेहरे पर मल के चेहरा
रौशनी के जिस्म पर तीरगी का पहरा
वह पहरा तू उतार के
फ़ज़ा को फ़िर बहार दे
पपड़ी ज़दा होठों को नई एक पुकार दे
इनसानियत को प्यार कर
इनसानियत को प्यार दे...
Aabru e faza: honour of nature
Qaza: death
Teergi: darkness
Daur e jadeed: modern era
Sard Mehri: cold/ rude attitude
Haamila: pregnant
Madah parasti: materialism
Dayaar: world
Dr Shaista

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