Thursday, February 27, 2014







खुश्बुओं का सफ़र

मेरी ज़िंदगी के हर रंग की आशनाई खुश्बू है
इसकी हर गिरह से चुराई खुश्बू है
खुश्बू बचपन है जवानी है
मेरी उम्र के हर पड़ाव की कहानी है
मेरे दिल का मौसम खुश्बुओ को चख के बदलता था
ज़िंदगी के हर हर साज़ में ढलता था
पहली खुश्बू बचपन की
मेरी माँ के आँचल की

घुंघरले काजल की
मतवाले बादल की
नन्ही नन्ही कहानियों की
काग़ज़ की नाव की पानियों की
माँ के दामन में जज़्ब होती
मेरी मुस्कान की
आँसुओं की खुश्बू
बारिश के जुनून की खुश्बू
मिट्टी की बंद मुठ्ठियाँ खोलती
जल्थल होती फ़ज़ा की खुश्बू
खुश्बू घांस के धुल जाने की
कलियों को चिटखाने की
मौसमो में ढलते माहो साल की खुश्बू
जाड़े से पतझढ़ में ग़लती जिल्द-ओ-खाल की खुश्बू
खुश्बू कमसिन गालों की
बेफ़िक्र बिखरते बालों की
खुश्बू सोलह साल की
नौ-उम्र शुआओं की ख्वाबों की
जवाब में लिपटे सवालों की
पसीने में नहाई खुश्बू चीखती धूप की
तपिश को पँखो में समेटती खुश्बू मखमली शाम की
खुश्बू बेनाम बौछारों की
मलमल से बेचैन किनारों की

और अब... खुश्बू है सांसो की
उसके लहजे की , उसकी बातों की
उसके कपड़ों की ,उसके हाथों की
खुश्बू ही उसकी आहट है
मेरी शर्म-ओ-हया में गूँजती घबराहट है
बालों में सरसरती हवा की
उंगलियों के पोरों की
होटो की
बालों की
हवा में बिखरते गुलालों की
फिर खुश्बू नन्ही किलकरी है
मेरे आँगन की फुलवारी है
नर्म नाज़ुक लबों की बेक़ारारी है
नन्ही नन्ही दुश्वारी की
खुश्बू तॉतली ज़बान की
खुश्बू माँ के नाम की की
जॉन्सन से नहलाने की
काजल तेल लगाने की
देखो फिर लौट आई है
खुश्बू बचपन की
पहले जो मेरे तन की थी
अब है मेरे लाल के बचपन की...

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