~~मैं खुश्बू का क़ाफ़िला हूँ~~
मैं खुश्बू का क़ाफ़िला हूँ
जो सरापा फूल बन जाते
तुम्हारी ज़ूलफें अगर छूते
कानों के ज़रा ऊपर
गुलाबी जिल्द पर उभरी
हरी उस नस की धड़कन को
अपनी रग मे धड़कIते !
मैं खुश्बू का क़ाफ़िला हूँ
जो सरापा फूल बन जाते
तेरी मासूम लट थामे
गरदन तक उतर आते
उलझे ख़म को सुलझाते
सुलह आपस मे करवाते
और हर एक बोसे मे
बहार ओ गुल खिला जाते!
मैं खुहबु का क़ाफ़िला हूँ
जो सरापा फूल बन जाते
तुम्हारी उंगलियों में
जो शर्मगी लम्स ठहरा है
उस लम्स की सांसो मे
अपनी साँसे पिरो जाते
वो साँसे फिर खनक उठती
सिहरती सुर्ख़ चूड़ियों मे
उंगली दाँत की हमराह
फिर शर्मा का बिछ जाती
उनसे उभरी शोखी में
हम ही हम नज़र आते !
मैं खुश्बू का काफिला हूँ
जो सरापा फूल बन जाते
तेरे पाँव की एड़ी से
लम्स बन कर, सदा बन कर
दुआओं सा बिखर जाते
नक्श-ए- पा पर फिर तेरे
सदजो की तरह बिछ कर
आरज़ुओं को मनवाते
मैं खुश्बू का काफिला हूँ
जो सरIपा फूल बन जाते!!
Dr Shaista Irshad
नक्श-ए- पा: footprints
शर्मगी: shy
सिहरती: shivering
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