Wednesday, April 29, 2020

~~रूह ओ जिस्म ~~



~~रूह ओ जिस्म ~~


जिस्मों को ठोकर लगी 
रविश ए रूहानी पर
रूह ने संभाल लिया
 जूस्तजू ए जवानी पर
मुख़्तसर ये हयात थी
रूह से रूह की बात थी
नही जवान धड़कनों की तर्ज़
इश्क़ था कोई ला-इलाज मर्ज़ 
रूह ओ इश्क़ की लफानी पर
आरज़ुओं के क्या मानी पर
मेरी आरज़ू  जो थी रिस गई
तेरे पसलियों के दरमियाँ
तेरी हथेलियाँ 
तेरे बाज़ू थे 
एक शोर मे बेक़ाबू थे
मैं उंस ए मुश्क़ मे थी मुबतिला 
मेरी ख्वाहिशों का जो था काफिला 
एक नूर मे थी पिरो रही 
अश्क़ ए लहू से रो रही
तेरे तर्ज़ ए उलफत की बेयिमानी पर...
अपनी जूस्तजू की रवानी पर..
...

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