Tuesday, March 17, 2015




निचोड़ लाऊं मैं रात की नीम मदहोश पलकों से अपने हिस्से की नीदं
और वह यूँ ही मेरे बिस्तर की सिलवटों को तन्हा सिसकता देॆखे......
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Tumhari sahmi hui palkein
Or
Baadlo ka hujoom
Wallah
Kis Kis ko barasta dekhun....

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हर्फ़ों के घूँट पिला दे साक़ी
मेरी आँखों के सफ़्हे कोरे हैं....
तेरी आवाज़ में लिपटे साग़र कई
मेरी तिश्ननगी के सावन अधूरेे हैं....
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अफ़्सुर्दा मेरे बाज़ुओं पर
काँपती तेरी उंगलियों का
लम्स दहक उठता है
जब बारिशें भिगोती हैं
बूँदो को चुभोती हैं....
याद धुलती नही तेरी
शब छन के पलकों पर
रात भर मचलती है
सुबह से जलती है....
अफ़्सुर्दा मेरे बाज़ुओं पर

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तन्हाईयोँ की तह में तेरी यादें मसल गईं
तू आ के मेरी सोच की सिलवटें उधेड़ दे...... 


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मिशग़ान पर आंसुओं का बोझ इतना है...
रूह पर पैरहन ए बदन थक गया हो जैसे.... 

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तेरे नाम से शानासाई को अपनी आदत लिख बैठा हूँ
तेरी यादों में उठती सदाओं को इबादत लिख बैठा हूँ
रात की गहरी छाया कैसे छम से सहर हो जाती है
तेरी पलकों के झुक कर उठने को क़यामत लिख बैठा हूँ 


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तेरी भीगी आवाज़ की लरजि़शों में
कापंते होठोँ में दबी ख़्वाइशों में
मेरा इश्क़ आवाज़ देता है तुझे
दड़कनों से उठती सरगोशियों में... 

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उम्र के कान्धे पे यूँ ढोती रही ख़्वाइशें तमाम
तेरे क़दमों में गर मनजि़ल मिले सारी ख़वाहिश तमाम हो जाएं...

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उम्र के ग़ुज़रते क़ाफ़िलों में
एक बचपन मेरा ठहर गया
दिन महीने और साल तो बीते
बचपन में पहरों पहर गया
उधेड़ के परतें समझदारी की
ना समझी क्या पाया है
माँ की गोद बाप का आँगन
वो बेफिक्री का दहर गया... 


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दाँतों तले ख़याल तेरा
ज़बान के साथ कुचल गया था
मैं रूक कर उठती टीस के इन्तज़ार में
ख़ामोशियाँ निगलती रही
हाँ
यादों की ख़ुराक पर ज़िदा रहना
शायद
ऐसा ही होता है.....


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तुझसे बिझड़ कर मुझमें कहीं
तन्हा सा अधूरापन रहता है
शाह- ए- रग में रवां दवां है
अश्कों सा आखों से बहता है..
सांसों में तेरी घुल जाऊँ तो
रूह में तेरी रुल जाऊँ तो
इश्क़ यह अपना मुकम्मल हो
जज़्बों का कारवाँ कहता है....


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Tishnagi Tishna lab ki mere sairaab nahi hoti
Iqraar tera chhuey to ...aab- e -hayaat ho jau...

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Sadiyaan guzaar kar main ...
 Lamhe ki qaid me hoon....    

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सिसकियां टूट कर बिखर गईं इक तरफ़ा चाहत की
और झुर्रियाँ सवारंते हुए बूढ़ी हुई उलफ़त मेरी..... 


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मेरे सीने पर तेरी धड़कनों का मचलता हुआ वह रक्स
मैं आज भी जी उठता हूँ तेरी सांसों के तसव्वुर से.....


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मैं तुम्हारी सांसों से रिहा हुई इक दड़कन कि तरह हूँ
ना अधूरी हूँ.... ना मुकम्मल होती हूँ.................. 


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सांसों से पी कर नज़दीकियां तेरी
मैं खुशबुओं से लबरेज़ एक जहान हो गईं हूँ 


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तुझे रूबरू देख कशमकश में हूँ जान मेरी
एहतराम में धड़कनें दिल की ठहर ना जाएं कहीं... 


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